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रविवार, 13 मई 2012

शोकगीतों का कोई अंत नही



मेरे लिखे को पढ़ने के बाद एक मूर्धन्य आलोचक ने सवाल किया है कि मुझे अपने शहर में कभी भी कुछ सकारत्मक क्यों नहीं दिखता |उनकी इस टिप्पड़ी के बाद मुझे लगा कि मेरी दूर दृष्टि में ही संभवतः कोई खोट है कि मुझे अच्छी चीजें या तो दिखाई नहीं देतीं या दिखती हैं तो बहुत धुंधली |वैसे तो समस्या मेरी नज़दीक की नज़र में भी  है |लेकिन मैं ऐहतियातन पास देखने वाला चश्मा डोरी में ऐसे  बांध कर सीने से लगाये रहता हूँ जैसे वह कोई चिड़िया का बच्चा हो जो हाथ से छुटा नहीं फुर्र हुआ |कबूतरबाजी की भाषा में कहा जाये तो कहना होगा कि मैंने अपनी ऐनक के पर कैंच कर रखे हैं ताकि वो इधर उधर न होने  पाये |फ़िलहाल मैं अपनी नजदीकी नज़र से अपने शहर को देखने परखने की कोशिश कर रहा हूँ |
इसे आप संयोग  कह सकते हैं कि मैं अपने शहर के गौरव बिंदु तलाशरहा था और चेन झपटमार पूरे शहर को अपनी झपटमारी के करतबों को खुलेआम दिखाते निर्द्वंद घूम रहे थे |इसमें अनेक महिलाएं लुटी |खूब रोना धोना हुआ |इसी झपटमारी के चलते  अनीता की जान चली गयी |लुटेरे अपने मकसद में कामयाब रहे उनमें से न कोई घायल हुआ ,न पिटा ,न पकड़ा गया |बड़े बड़े शहरों में ऐसी छोटी मोटी वारदातें होती रहती हैं |लेकिन मेरे भीतर अभी तक वही कस्बाई मानसिकता रहती है जो दिवंगत अनीता के मासूम बेटे नमन की तरह बात बात पर  सहम जाती  है |अपनी मम्मी को चंद झपटमारों के हाथों बेमौत मारे जाने को वह शायद ताउम्र नहीं भूल पायेगा |क्या इस हादसे के बाद उसकी ज़िदगी और उसे देखने का नजरिया पहले जैसा   रह पायेगा  ?
मेरे शहर में जब अपने युवा होते बेटे की बाईक पर पीछे निश्चिन्त बैठी माँ पुलिस थाने और उसके आला अफसर के आफिस के सामने यूं बेमौत मारी जा सकती है तो यहाँ सुरक्षित कौन है ?आधी रात को कुख्यात काली पल्सर पर सवार तीन –तीन  बदमाश सड़क से पुलिस की चौकस निगाहों को धता बताते धडल्ले से निकल जाते हैं तो इसको क्या कहा जाये ?बदमाशों की कार्यकुशलता पर उनकी शान में कसीदे काढे जाएँ ?पुलिसिया संवेदनशीलता पर यकीन कायम रखा जाये ?या फिर नमन के दुर्भाग्य को नियति की होनी मान कर चुपचाप स्वीकार कर लिया जाये ?
मित्रों ,यह कोई व्यंग्य नहीं है |किसी की मौत पर हंसना सीखने के लिए मेरे शहर को अभी एक लम्बी यात्रा तय करनी होगी  |अपने  तमाम खुदगर्ज़ आचरण  के बावजूद इस शहर के लोगों के आंसू दूसरों की पीड़ा पर अभी तक बरसते हैं |मेरा यकीन करें कि ये आंसू कतई घडयाली नहीं हैं  |इस दर्दनाक हादसे ने अनेक ऐसे असुविधाजनक सवाल खड़े कर दिए हैं जिनका उपयुक्त जवाब ढूढे बिना निजात नहीं |इन सवालों को किसी टान्ड पर सरका कर यह कहने से काम नहीं चलेगा कि जो हुआ सो हुआ फिर कभी नहीं होगा |मैं ताकीद कर दूं कि प्रोफेशनल लुटेरे किसी की जान की परवाह नहीं करते |इनके दिल न पिघलते हैं न बदलते हैं |इनको इनके उन बिलों से ढूँढ निकालना ज़रूरी है जो इनके आकाओं ने निहित स्वार्थ के चलते उपलब्ध करा रखें हैं |ऐसे ज़रायम पेशा लोगों का कोई मजहब नहीं होता |लेकिन यह रहते यहीं हैं –हमारे इर्दगिर्द|ये किसी दूसरे ग्रह से आये प्राणी नहीं हैं |वे इसी शहर में रहते हैं यहाँ की हवा में सांस लेते हैं |यहाँ का अन्न जल पाते हैं और इसी शहर के  सीने पर खुलेआम मूंग दलते  हैं |क्या इनका पता वाकई किसी को भी नहीं मालूम ?
चंद गुंडों, मवालियों ,चेन झपटमारों ने पूरे शहर का सुखचैन छीन लिया है और मुझसे कहा जा रहा है कि इस शहर की शान में कुछ लिखूं |मैं अभी तक फरेबी शब्दजाल बुनने की कला सीख पाने में असमर्थ रहा हूँ |यही वजह है कि मैं इस शहर के चौखटे के लिए मिसफिट हूँ | फिलहाल तो मेरा दिल दिवंगत आत्मा के प्रियजनों के आंसूंओं से तरबतर है इसलिये   हँसने हंसाने की बात कर पाना मेरे लिए असंभव हैं |इसबार यह शोकगीत पढ़ें और इसे पढ़ने के बाद रोने का मन करे तो संकोच न करें | अभी तो इस शहर के मुक्कद्दर में न जाने कितने शोकगीतों का साक्षी बनना लिखा है |
निर्मल गुप्त
मोब.08171522922

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