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शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

मजनू इतना गया गुज़रा तो नहीं था

फिर वही हुआ |मेरे शहर में लड़कियों के साथ छेड़छाड करने वालों के खिलाफ जिस उत्साह और त्वरित गति से पुलिसिया अभियान चला था वो चंद प्रेमनिर्पैक्ष लोगों को सरेबाजार लज्जित ,अपमानित और प्रताड़ित करने के बाद उससे भी अधिक तीव्र गति से  अपनी अधोगति को प्राप्त हो गया |पहले भी यही हुआ था ,पुलिस पार्कों में ,झाडियों में ,किसी शिला के पीछे ,पेड़ों के झुरमुट में ,किसी चाय के खोखे में ,यहाँ- वहाँ ,मजनू के वंशजों को पकड़ने -पीटने का सार्वजानिक प्रदर्शन करती रही  और वास्तविक प्रेमपुजारी अपनी -अपनी निरापद खोहों में बैठ कर अपनी लैलाओं को रसपगे एसएमएस और नयनाभिराम एमएमएस भेजते रहे|तब खबर तो यह भी थी कि पुलिस के कुछ उत्साही अधिकारियों ने ऐसे मजनूओं को पकड़ लिया, जो सरेराह किसी अनजानी सुन्दरी के समक्ष अपने प्रेम के प्रस्ताव की अभिव्यक्ति करना तो दूर अपने घर के बेडरूम तक में  अपनी विवाहिता पत्नी के सामने प्यार का इज़हार करने की सोचते ही हकलाने लगते हैं |
               मेरा मानना है कि पुलिस के काम करने का अपना तरीका है ,ये इतिहास से कभी कुछ नहीं सीखते |वे अपने इतिहास के  पन्नों पर दर्ज इबारत को  बार -बार दुहराते हैं और नाकाम होते ही तुरंत इतिहास का एक और पन्ना दुहराने के लिए यह सोच कर पलट लेते हैं कि कामयाबी का शैतान बच्चा वहाँ नहीं तो यहाँ तो ज़रूर  छुपा हुआ मिलेगा ही |संभवतः पुलिसिया संस्कृति में किये गए कार्यों के साथ उनके नतीजों को अंकित करने की कोई परिपाटी कभी रही ही नहीं |उन्हें नहीं मालूम कि इतिहास की आकृति हमेशा वृताकार नहीं होती ,बदलते समय के साथ इतिहास कभी समय के समानांतर आगे बढ़ता है तो कभी -कभी किसी पेटर्न की परवाह किये बिना किसी अनाड़ी कलाकार द्वारा यूं ही खींची गयी आडी तिरछी रेखाओं के रूप में |जरा अपने समय के इस बनते हुए इतिहास को गौर से देखें , आपको एब्सर्ड शैली के किसी कलाकार द्वारा बनाई गई भूलभुलैया गलियों के मकडजाल की विहंगम तस्वीर दिखेगी |
                मुझे इस बात का ठीक से नहीं पता कि इस प्रकार के अभियान को मजनू का नाम क्यों दिया जाता है |यकीनन मजनू इतना गया गुज़रा नहीं था कि उसकी शिनाख्त शहरी शोहदों ,लफंगों,मनचलों या फिर सिरफिरों के साथ की जाये |मजनू का नाम तो  किसी के प्यार में अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले ऐसे  अप्रतिम प्रेमी  के रूप में समय की शिलाओं पर अंकित है ,जिससे  प्रेमपथ पर निर्भीकता से कदम बढ़ाते प्रेमीजन युगों -युगों से प्रेरणा हांसिल करते आये हैं |उसने अपने प्यार की खातिर किसी को मारा नहीं ,किसी को मरने के लिए बाध्य नहीं किया |वह  किसी के प्यार में खुद  मरा तो भी मरकर भी कहाँ मर पाया ,वह तो अजर  अमर हो गया |उसने कभी किसी राह चलती लड़की पर फब्ती नहीं कसी,किसी सुन्दरी को देख उसका पीछा नहीं किया ,किसी को प्यार करने के लिए धमकाया नहीं ,किसी के साथ बलात्कार नहीं किया, किसी को विवाह का झांसा देकर उसका दैहिक शोषण नहीं किया ,किसी को बेहूदा एसएमएस नहीं भेजा ,किसी का अश्लील एमएमएस बना कर यूटयूब पर डाउनलोड नहीं किया |तब  उसकी पवित्र स्मृति के साथ ये बेजा खिलवाड़ क्यों ?
                   प्रेमी तो और भी हुए हैं ,कुछ सुनामधन्य और कुछ कुख्यात भी|सुनामधन्य जैसे हीर -राँझा ,शीरी -फरहाद ,सोनी -महिवाल और...और ... सैफ -सैफीना (इसे आप करीना के नाम से जानते हैं )|कुख्यात नामों की फेहरिस्त पुलिस के दस्तावेजों में अवश्य होगी|इनमें से कुछ नाम तो मुझे भी याद हैं , लेकिन इनके नाम ले कर मैं अपने पीछे खूंखार कुत्तों को  लगवाने की नादानी भला क्यों करूं?भविष्य में ऐसे किसी अभियान को चलाना ही पड़े तो उसका कोई और नाम रखें |इन पवित्रात्माओं के नाम का दुरूपयोग रुकना चाहिए |
                  इसके बावजूद यदि यह जिद है कि ऐसे अभियानों का नामकरण इन प्रेमियों के नाम पर किया जाना है तो मेरी चुनौती है कि बिना किसी लिंग भेद के कभी लैला ,हीर ,शीरी या सोनी के नाम पर इन अभियानों को चला कर देखें |देश भर में नारी विमर्श से जुड़े इतने बुद्धिजीवी ,इतनी संस्थाएं और इतनी मुखर नेत्रियां हैं कि विश्वास करें कि उनकी उग्र  हुंकार के आगे दिन में ही सूर्यास्त हो जायेगा|
                  मजनू तो बेचारा है ,उसका तो हर ऐरा -गेरा नत्थूखेरा  मजाक उड़ा रहा है ,पर इसे देख सुनकर उसकी और लैला की रूह कब्र में बेचैन तो बहुत होगी |किसी के प्यार का ऐसा भद्दा उपहास इतना जघन्य कृत्य है जैसे कोई मैथुनरत क्रोंच पक्षी का वध कर दे या किसी खूबसूरत तितली के पंख नोच डाले या कठफोड़वा की पैनी चोंच को भोथरा कर दे या फिर किसी मसखरे को रोने के लिए बाध्य कर दे |ज़रा सोचें ,क्या प्यार को ईश्वरीय आराधना का दर्ज़ा  देने वाले  इस  बर्ताव के हक़दार हैं ?
निर्मल गुप्त
                  




















 

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