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रविवार, 15 जुलाई 2012

ईश्वर कहाँ रहता है ?



सुबह सवेरे मार्निंग वाक के लिए निकला तो रास्ते में  आकर्मडीज़  मिल गए |हाफपैंट और टीशर्ट पहने वह पसीने में तरबतर थे |मैंने उनसे पूछा गुरु ,आप यहाँ |विज्ञानियों ने गाड पार्टिकल खोज लिया है |वे सब खुशियाँ मना रहे हैं और आप यहाँ घूम रहे हैं |उन्होंने जवाब दिया कि ज़माना बदल गया है , हमें कौन पूछता है |वैसे भी किसी कामयाबी को हांसिल करने  पर उनकी तरह ताली पीटना हमें आता नहीं |यूरेका यूरेका करते हुए सड़क पर दौड़ना अब बड़ा जोखिम भरा काम है |
वो कैसे ,मैंने पूछा |
तुम्हारे मुल्क में नंगे आदमी को कुत्ते दौड़ा लेते हैं और पूनम पांडे और सनी लिओन सरीखी को सर माथे पर बैठाते हैं |जिसे बंधा रहना चाहिए वो खुला घूमता है और जिन्हें मुक्त होना चाहिए उनपर लाखों पहरे हैं |  आकर्मडीज़ के जवाब में हताशा थी ,
फिर भी ईश्वर का कुछ अता पता तो मिला |यह एक बड़ी उपलब्धि है |मैंने कहा |
काहे की उपलब्धि जी ,ईश्वर गुम कब हुआ था जो मिल गया |वह तो तब भी था जब मैं अपने बाथटब से निकल कर नंगा सड़क पर दौड़ा था |वह इससे पहले भी था और आज भी है ,हमारे आसपास ,उन्होंने तुरन्त कहा |
ईश्वर लापता तो नहीं था पर उसका कम्प्लीट एड्रेस भला किसके पास था |मैंने प्रतिवाद किया |
कम से कम तुम तो ऐसा न कहो  |यदि ईश्वर लापता होता तो तुम्हारे  यहाँ इतने तथाकथित धर्म गुरुओं ,ज्योतिषियों,तांत्रिकों,नजूमियों  का कारोबार कैसे चलता |वह बहस को आगे बढ़ाने के मूड में थे |
पर आप यह तो मानेंगे कि गाड पार्टिकल मिला है तो एक दिन उसके साक्षात दर्शन भी हो जायेंगे |मैंने फिर कहा |
हाँ हाँ हो जायेंगे |पर उनके दर्शन से होगा क्या ?उन्होंने अत्यंत चुभता हुआ सवाल दागा |
तब हमारी हर दुःख तकलीफ का समाधान हो जायेगा |जीवन खुशियों से भर जायेगा |मैं हार मानने को तैयार न था |मैंने कहा |
अब तक यह काम कौन करता आया है ?तुम्हारा  सरकारी तंत्र तो कभी कुछ करता नहीं |वही है जो तमाम प्रशासनिक निकम्मेपन के बावजूद इस मुल्क को अरसे से चला रहा है |आकर्मडीज़ के स्वर में तल्खी थी |
मैं उनके इस कथन के बाद निरुत्तर होने के करीब था |मैंने एक और कोशिश की,कहा ,ईश्वर के सान्निध्य  की चाहत किसे नहीं होती ?
उसका  सान्निध्य पाकर क्या करोगे ?उसे अपनी चाहतों की वो फेहरिस्त थमाओगे जो उसके पास पहले से मौजूद है |उसे अपनी चालाकियों और बेईमानियों  में  दस या बीस परसेंट का भागीदार बनने का प्रपोजल दोगे |अब भी तो तुम्हारी प्रार्थनाओं में यही सब होता है |उन्होंने कहा|
लेकिन ---फिर भी ---मैं हकलाया |
ईश्वर की उपस्थिति का  यूं सार्वजानिक हो जाना कोई अच्छी खबर नहीं होगी |आदमी से उसकी कुछ दूरी का बना रहना ही ठीक है |उसे शांतिपूर्वक अपना काम करने दो  |उससे मिलने मिलाने की बेकार कोशिश न करोआकर्मडीज़ की आवाज़ मानो  किसी गहरे कुएं से आ रही थी |
मेरे पास अब कहने को कुछ बचा न था |मुझे मौन होता देख आकर्मडीज़ हौले से मुस्कराया और बोला ,विदा दोस्त ,मैं चलता हूँ ,मुझे अभी थोड़ी जोगिंग और करनी है और फिर एक ओल्डएज होम जाना है ,जहाँ बीमार ,निराश, घर -परिवार नाते रिश्तेदारों द्वारा  ठुकराए ,समाज के सताए बूढ़े लोग मेरा इंतज़ार करते होंगे |उन्हें हमारे प्यार दुलार देखभाल की ज़रूरत है |सच कहूँ इस खुदगर्ज़ दुनिया में ईश्वर वहीं रहता है |उसका सही पता किसी  विज्ञानी को  कभी नहीं मिलने वाला |
यकीन मानो ,ईश्वर वहाँ नहीं रहता जहाँ उसे तुम अक्सर ढूँढा करते हो |वह किसी मंदिर ,मस्जिद ,चर्च ,गुरूद्वारे या अन्य इबादतगाहों में नहीं रहता | उसे किसी भजन कीर्तन  कव्वाली तन्त्र मन्त्र या पुरजोर प्रार्थना के जरिये  नहीं पा सकते |वह रहता है हर मेहनतकश के उस निवाले में जिसे वह किसी भूखे के साथ बांटता है ,उस जांबाज़ तैराक की बाँहों में जो डूबते हुए को बचाने के लिए बाढ़ से उफनती नदी में अपनी जान जोखिम में डाल कर कूद पड़ता है ,कुछ नया रचने मे संलग्न किसी कलाकार की जिद में ,अन्याय के खिलाफ डट कर खड़े आदमी की रूह में ,हालात से जूझने वालों के साहस में ,निराशा के घटाटोप में उम्मीद के किसी टिमटिमाते दिए की लौ में या संत कबीर की उस वाणी में जो हर  पाखण्ड को धिक्कारती है |




3 टिप्‍पणियां:

  1. ईश्वर मिलेगा कहीं
    पर मुझे लगता है
    वो भी हकलायेगा ।

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  2. नहीं सुशील जी ईश्वर कभी नहीं हकलाता .बोलने बतियाने हकलाने का सर्वाधिकार आदमी के पास है .ईश्वर केवल सुनता है .बोलने का काम उसका है ही नहीं .

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  3. बहुत सुंदर लेख है ....पहली बार आप के ब्लॉग रार आई बहुत अच्छा लगा ....

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