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रविवार, 29 अप्रैल 2012

छी छी ..खी खी खी खी और डर्टी पिक्चर


 

पिछले रविवार को मेरे शहर के समस्त संस्कारवान लोग इस इंतज़ार में थे कि आज तो टीवी पर डर्टी पिक्चर देखने को मिलेगी  | उनके मनों में इसे लेकर वैसा ही उत्साह था जैसा कभी सत्यनारायण की कथा सुनने को लेकर हुआ करता था | दिन में बच्चे ने मम्मी को  पडोसन से कहते सुना –छि:छि: इस फिल्म को भला कौन देखेगा ,यह तो बड़ी डर्टी है |उसी बच्चे ने रात को अपनी मम्मी को पापा से कहते सुना –सुनोजी ,आज रात तो वो पिक्चर आएगी टीवी पर ,देखेंगे खीखी --- खीखी |बच्चा हैरान कि दिन से रात होते मम्मी के विचार कितने बदल गए |उसे नहीं पता कि मम्मी हो या सरकार इनके ख्यालात कभी स्थिर नहीं रहते |सरकार का  कहा तो वैसे ही हर पल अपना आकार बदलता है जैसे पानी |गिलास में गिरा तो ग्लास हो गया ,बाल्टी में रखा गया तो उस जैसा |गर्मी मिली तो उबलने लगा अधिक ठंडक मिली तो जम गया |सरकारी बयान तो हालात के अनुसार  बदलते हैं |
लेकिन मम्मियां ऐसी नहीं होती | उनके मुख से फरमाइशों के शब्दवेधी बाण निकलते हैं, जो हमेशा निशाने पर लगते हैं |पर सरकार की  बात कुछ और है |वह जो कहती है ,करती नहीं |करती है तो बताना नहीं चाहती |उसके महकमे अपने काम से काम रखते हैं |उसका एक विभाग डर्टी पिक्चर को राष्ट्रीय सम्मान से नवाजता है और दूसरा उसके टीवी पर न  दिखाए जाने का फरमान जारी करता है |यह बात किसी के गले नहीं उतर पा रही है कि डर्टी पिक्चर को मिला यह कैसा राष्ट्रीय सम्मान है जिसे लेकर अँधेरे में मुहं छिपाना पड़े |
सरकार का  कहना यह है कि ऐसी डर्टी पिक्चर को केवल रात के अँधेरे में ही देखा दिखाया जा सकता है क्योंकि ऐसे- वैसे कामों के लिए वही  समय उपयुक्त होता है |दिन में अपहरण ,डकैती ,बलात्कार ,गैगरेप,घोटाला जैसे काम हो सकते हैं | यदि दिन में डर्टी पिक्चर का  प्रसारण हुआ तो  हमारी संस्कृति ,नैतिकता  और सदाचार की झीनी चदरिया पर कालिख पुत जायेगी |सरकार अपनी उज्ज्वल छवि को लेकर अब बहुत सतर्क है |
मेरा शहर  इस  बात को लेकर कौतुहल  से लबरेज रहा  कि आखिर इस पिक्चर में है क्या ?ज़रा हम भी तो देखें कि ये डर्टी वर्टी  होता कैसा है |अधिकतर लोगों को तो यही मालूम है कि डर्टी बोले तो नटखट |चतुर ,चपल ,चंचल ,ऊर्जावान ,अतिशय मेधावी ,मृदु स्वभाव ,अल्पभाषी और शब्दों का काम  नैनों से लेने वाली| ऐसी लड़की को ही तो लोग कभी कुढ़ कर तो कभी लाड में कह दिया करते हैं –यू आर ए डर्टी गर्ल |दूसरे शब्दों में ये दो आखर का  डर्टी  भी उतना ही मासूम है ,जितना ढाई आखर का सेक्सी |आज किसी लड़की के साथ यदि सेक्सी का विशेषण जुड जाये तो समझा यही जाता है जैसे उसकी खूबसूरती में चार चंद लग गए  |
हमारी सरकार तो बात बेबात के चौंकती बहुत है |उसको  यह बीमारी अरसे से है |एक बार एक फ़िल्मी गीत आया था –चोली के पीछे क्या है |तब भी सरकार सशंकित हुई थी |उसने खूब मंथन किया था कि इस गाने का बैन करे या यूं ही सरेआम बजने दे|पर इतिहास गवाह है कि उसकी तमाम आशंकाएं कितनी निर्मूल साबित हुई थीं |और क्यों न होतीं ,जब देशभर के दूधमुहें बच्चों तक को मालूम था ,चोली के पीछे क्या है वाले दो कौड़ी के  सवाल का सही जवाब |
हमारी सरकार जनता की बुद्धिमत्ता को बहुत कम करके आंकती  आई  है |वह डर्टी का निहितार्थ बखूबी जानती है |इसीलिए तो मेरे शहर की मम्मियां जब डर्टी पिक्चर की बात उठती है तो उसे कहीं तलक भी नहीं जाने देती और मुहं में साडी का पल्लू दबाकर फिस्स से हंस भर देती हैं |उन्होंने उस दिन इस फिल्म के प्रसारण का सुबह से देर रात तक बहुत इंतज़ार किया और जब उसके दीदार न हुए तो वो छि:छि: और खीखी..खीखी करती हुई मन मार के  सो गईं |

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