४/५ जून की आधी रात जब बाबा राम देव ने १२ फुट ऊँचे मंच से नीचे छलांग लगाई तो मेरे शहर में अनिद्रा के रोग से ग्रस्त उनके कुछ गिने चुने भक्तगणों के अलावा सभी गहरी निद्रा में डूबे थे|लेकिन जब सुबह हुई तो बाबा की जांबाजी का यह समाचार सारे शहर में जंगल की आग की तरह फैल गया|इस आग की गर्माहट जब बाबा के प्रात:कालीन योगाभ्यासी भक्तों तक पहुंची तो इस सहज जिज्ञासा की चिंगारी चारों ओर उड़ी कि अब बाबा कहाँ है |लेकिन इसका पता किसी को नहीं था|यह पता लगते ही बाबा के तमाम भक्त अनुलोम विलोम ,कपाल भांति आदि क्रियाओं को भूल विक्षोभ की अथाह गहराईयों में उतराने लगे|उनके कुछ अतिउत्साही भक्तगण तो बाबा के लापता होने की सूचना पाते ही कुंभक (सांसों को रोक लेना )की अवस्था में चले गए|वे इस अवस्था में तब तक समाधिस्थ रहे जब तक बाबा देहरादून के एअरपोर्ट पर श्वेतवर्णी पोशाक में प्रकट नहीं हुए |जानकार लोग बताते हैं इस प्रकार बाबा के अतिउत्साही भक्तों ने साँस रोक कर इतने लंबी अवधि तक जीवित रहने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया लेकिन हड़बड़ी में बना यह यह रिकार्ड अधिकारिक न बन सका |उनके भक्तों को इस बात की कोई परवाह भी नहीं |उनका तो कहना था कि जब बाबा के प्राण संकट में हों तब तक हम भला साँस भी कैसे ले सकते थे|
बहरहाल बाबा जब अपने आश्रम में पहुँच कर पुनः अनशनासीन हो गए और इसकी प्रमाणिक खबर सब को मिली तब उनके भक्तों ने राहत अनुभव की|इसके बाद यह जानने और बताने का सिलसिल शुरू हुआ कि आखिर रात में हुआ क्या था |एक सवाल ने तब बवाल कर दिया जब उनके एक नवोदित भक्त ने कहा कि बाबा आखिर वहां से छलांग लगा कर भागे क्यों |वह यदि अपनी गिरफ्तारी दे देते तो उससे उनका क्या अहित होना था|ऐसे ही अनेक असुविधाजनक सवाल जब कुछ और लोगों ने भी उठाये तो उनके हार्डकोर भक्तों को अंततः कहना पड़ा कि हमारे संगठन में धर्म, संस्कृति और समाज विरोधी लोग घुसपैठ कर गए हैं|उनके इस तर्क को सुन नवोदित भक्तों का सब्र का बांध ही टूट गया |उन्होंने तुरंत दलील दी -जिसका काम उसी को साजे और करे तो डंडा बाजे|बाबा से किसने कहा था कि इस पचड़े में पड़ें |चुपचाप अपना काम करते तो मौज करते |न अनशन कर अपनी काया को दुःख देना पड़ता न उनके अनुयायिओं को रामलीला मैदान में जलालत सहनी पड़ती|
उनका कहना था कि बाबा ने एक योगगुरु के नाते अपनी सीमाओं का अतिक्रमण किया है|यह कथन मेरे शहर में अनेक महान विचारकों के बीच गर्मागर्म बहस का मुद्दा बना हुआ है.|सुबह सवेरे मेरठ कालेज चौराहे पर बाबूलाल की कुरकुरी जलेबी कचौरियों को उदरस्थ करते हुए ,दोपहर में लालकुर्ती में हरिया की लजीज लस्सी पीते हुए और रात को बुढ़ाना गेट पर मुन्ना हलवाई की दुकान पर दूध की धार से कुल्हड़ में उठे झागों के बीच यह बहस अपने नरम गरम रूप में चलती रहती है |वैसे तो बहस सार्वजानिक पार्कों और अन्य स्थानों पर भी होती है पर लज़ीज़ व्यंजनों के अभाव में कोई बात नहीं बनती|मुद्दा चाहे जितना गंभीर हो उसमें जब तक देशज स्वाद का तड़का न हो बात नहीं बनती |
केन्द्र के एक बड़े नेता ने कहा है -बाबा योग सिखाते हैं वही सिखाएं,हमें राजनीतिक आसन न सिखाएं| लेकिन मैं उनके इस तर्क से कतई सहमत नहीं क्योंकि हमने उन्हें ही श्रेष्ठ माना है, जिन्होंने अपने प्रोफेशन का अतिक्रमण किया |मैं ऐसे अनेक चिकित्सकों को जानता हूँ जिन्हें मेरा शहर इसलिए सर आँखों पर बैठाता है क्योंकि वे चिकत्सीय नुस्खे के साथ प्रवचन देने में पारंगत हैं |एक वकील साहब के तो लोग इसलिए कद्रदान रहे कि वह देर रात आँखों में लाल डोरे वाली बत्तखों के तैरने के बाद के .एल .सहगल की आवाज़ में दर्द भरे गीत गाने में माहिर थे |एक हलवाई की दूकान बरसों तक इसलिए खूब चली क्योंकि वह अपने हर ग्राहक को साहब ,हुज़ूर ,मेहरबान कह कर इस अदा से टेरते थे कि सुनने वाला गदगद हो जाता |एक प्रोफ़ेसर के नाम का सिक्का इसलिए चलता रहा कि वह अपने तीन दशक पुराने इश्क के किस्से कक्षा में अपने शिष्यों को पूरे मनोयाग से सुनाया करते थे |
बाबा रामदेव अपनी सीमाओं को खूब जानते हैं और उन्हें अपने विस्तार की प्रविधि का भी खूब पता है|उन्होंने आधी रात को इतनी गहरी छलांग लगा कर यह सन्देश पूरे राष्ट्र को दे दिया है कि देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए अष्टांग आसन के साथ -साथ छलांग आसन की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है |
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