एक
समय वो भी था जब पत्र बड़ा कमाल करते थे |इनके जरिये एक दिल से दूसरे दिल तक प्यार की पींग
पहुँच जाती थी |तब न एसएमएस था न एमएमएस ,न मोबाईल फोन ,न इंटरनेट और न
हीं फेसबुक |फेस टू फेस प्यार का इज़हार संभव ही नहीं था |लड़कियों के अभिभावक हाथ में मज़बूत डंडा और जेब
में राखी लेकर चलते किसी साये की तरह उनकी निगरानी करते थे |जरा सी चूक हुई नहीं कि डंडे से पृष्ठ
पूजा होती और कलाई में लड़की के हाथों राखी
बंधवा कर सद्य प्रेम का पटाक्षेप |बस एक पत्र ही थे जो अपेक्षाकृत सरल, सुलभ और कम
जोखिम वाला वह उपकरण थे , जिसके माध्यम से प्रेम गीत कभी –कभी हकीकत में तब्दील हो
जाते थे |उन
दिनों कुछ अतिमेधावी प्रेमी प्रेम गीत
लिखने का अभ्यास करते रह गए और उनकी प्रेरणा को कोई और ले उड़ा|अभी भी अनेक घरों के
पुराने संदूकों में बड़ी हिफाजत से रखे गए ऐसे प्रेम गीतों का जखीरा मिल जाया करता
है ,जिन्हें पढ़ कर लोगों की आँखे छलछला
आती हैं| |
ये उस वक्त
की बात है जब प्यार सिर्फ प्यार था |दो दिलों के धडकनों के बीच बहती पारदर्शी जल से
भरी खामोश नदी का पर्याय |तब तक किसी को
प्यार के व्यापारिक मूल्य का कुछ अता पता नहीं था |धीमी रफ़्तार से चलती जिंदगी में भावनाओं
की ये खतोकिताबत रोमांचित भी करती थी और
दैहिक प्यार को शब्दिक अभिव्यक्ति भी देती थी |उस समय शायद ही कोई ऐसा रहा होगा जिसने जवानी की
दहलीज़ तक पहुँचते न पहुँचते इसे महसूस न किया हो |हालंकि उस समय में भी हमारे समाज में
नैतिकता के स्वयम्भू पहरूओं की कतई कमी नहीं थी जो प्यार की गंध पाते ही आदमखोर हो
जाते थे |मेरे
मोहल्ले की गली नम्बर पांच में रहने वाले एक युवक की गली नम्बर दो में रहने वाली लड़की से आँखे चार
हुईं तो युवक ने अपने प्रणय निवेदन को कागज पर दर्ज़ करके उसे एक ढेले पर लपेट कर
लड़की की ओर आकाश मार्ग से उछाल दिया |गली नम्बर तीन में रहने वाले एक इर्ष्यालू ने उसे
लपकने की पुरजोर कोशिश की पर नाकामयाब रहा पर गली नम्बर चार में रहने दिलफुंके
आशिक ने कोई चूक नहीं की |फिर हुआ ये कि उस पेम पत्र के लीक होते ही ऐसी
किचकिच मची कि पूरे मोहल्ले में महीनों तक युवापीढ़ी के चारित्रिक पतन पर
मौखिक निबंध लिखे जाते रहे |
पर अब समय
बदल चुका है |अब न वो प्यार रहा न वो प्रेमी और न खत लिखने -पढ़ने वाले वैसे शूरवीर |अब तो पत्र कभी कभार
ही लिखे जाते हैं |जब लिखे जाते हैं तो अक्सर वो लीक हो जाते हैं |सरकारी दरोदीवारों में आँख कान और नाक उग
आये है |
स्वचालित हथियारों से लैस पहरेदारों की सुरक्षा में रखे पत्र फरार होकर लेटर बम बन
जाते हैं ,जिनके धमाके सरकारी ओहदेदारों को बेचैन कर देते हैं और मीडिया को दे देते हैं जश्न मनाने का मौका |अब सरकरी तंत्र की
गोपनीयता में इतने सुराख़ हैं जिनमें रखा कुछ भी बिखरने से कुछ नहीं बचता चाहे वो कैग की रिपोर्ट हो , राजकोष
,अतिसंवेदनशील सामरिक महत्व की जानकारी या फिर सेना प्रमुख द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा पत्र |
समय चाहे
कितना बदल गया हो पर पत्र तो अब भी बड़े जादुई हैं |बिना किसी आरडीएक्स,बारूद या ईंधन के धमाके पर
धमाके किये चले जा रहे हैं |
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