मेरठ मेरा शहर है .यह जैसा भी है पर है पर है दिल के आसपास.इसे केन्द्र में रखकर लिखा तो एक किताब बनी -एक शहर किस्सों भरा .यह किताब गरियाई भी गई सराही भी गई .
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गुरुवार, 1 अगस्त 2013
बुधवार, 13 फ़रवरी 2013
संत वेलेंटाइन तुम्हारा स्वागत है !!!
संत वेलेंटाइन वक्त से पहले ही प्यार के बिंदास इजहार और पारिवारिक
प्यार की लड़ाई लड़ते हुए तत्कालीन रोम के राजा के हाथों मारे गए l उनको मरे अरसा हुआ lवह चूंकि मर गए थे
तो वो किसी की जिंदगी में प्यार की बहार ले कर आते भी तो कैसे l उस समय तक जो एक
बार इस दुनिया से विदा हुआ वह कभी लौट कर नहीं आता था lकिसी किताब में रखे सूखे हुए फूलों की तरह
याद बन कर या ऐसे वैसे कैसे भी l अलबत्ता तमाम शायर कवि और लेखक उसके आने की
अफवाह जरूर फैलाये रहते थे lपर इन अफवाहों पर कोई कान नहीं देता था lवह समय ही कुछ ऐसा
था तब तक अफवाहें केवल अफवाहें ही रहती थींl उनका सच के रूप में भूमंडलीकरण नहीं हो
पाता था lहम तब
तकनीकी रूप से इतने संपन्न कहाँ थे ? यह अलग बात थी लोग प्यार तब भी करते थे और
उसका इज़हार करते हुए बड़े धीर गंभीर और सतर्क रहते थे l
मुझे यह बात आज भी कचोटती है कि हमारी उस उम्र में जब हमारे भीतर
प्यार और उसके इजहार का जज्बा बलबलाता था तब संत वेलेंटाइन अपनी कब्र में पुरसुकून
नींद में सो रहे थे l वह यदि तब आये होते तो बात ही कुछ और होती lहो सकता है कि हम अपनी जवानी के लम्हों को
सलीके से जी लेते l लेकिन उन दिनों ऐसा कुछ था ही नहीं इसलिए हम हम ठीक से जवान हुए बिना
यकायक ही बचपन से अधेडावस्था मे आ गए l ऐसा केवल मेरे साथ
ही नहीं हुआ ,चंद आवारा लौंडों ,शोहदों और बिगड़ैल खानदानी रहीसों के अलावा जवानी
तब किसी और के जीवन के आसपास भी नहीं
फटकती थी l
लेकिन अब हालात बदल गए हैं l हर ऐरे -गैरे नत्थू- खैरे के पास जवानी आती है l वह चूंकि बड़े
पुरलुत्फ अंदाज में आती है इसलिए उसकी स्थाई प्रदर्शनी निरंतर भिन्न –भिन्न रूपों
में चलती ही रहती है lइस मोबइल नुमाइश को कस्बों शहरों महानगरों में सरेराह कभी भी देखा जा
सकता है l सुना
है कि अब तो संत वेलेंटाइन का पुनरागमन हो चुका है l वह अपनी ख्वाबगाह से निकल आये हैं l उन्हें बाजार ने
अपना ब्रांड एम्बेसडर बना दिया है l हर साल वह बेनागा गिफ्ट बेचने वाली बहुराष्ट्रीय
कंपनियों की सजी धजी दुकानों पर टेडी बेयर ,दिल के आकार वाले गुब्बारों ,निर्गंध
फूलों के बुके ,हृदयाकार चाकलेटों ,पेस्ट्रीज ,च्विंगम ,लालीपाप और तरह तरह के ग्रीटिंग कार्डों के जरिये हर उस शख्स तक
ज़रूर पहुँचते हैं जो वास्तव में जवान (हाई स्कूल के सर्टिफिकेट के अनुसार ) या
अपने युवा होने के विभ्रम को कामयाबी से ओढ़े होते हैं l काश ! हमारी जवानी आने के दिनों में ऐसा
हो पाता l हम भी
तो देखते कि जवान दिल वास्तव में जब किसी
के प्यार में धड़कता है तो कैसा होता है उसका अहसास l हमारे पास तो जवानी के मामले में जो आधी अधूरी
जानकारी है वह हमें नीले पीले लुगदी साहित्य या उस लिटरेचर के जरिये मिली हुई है
,जिसे लोग तब भी और आज भी बड़ा उबाऊ लेकिन अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हैं lप्यार के इजहार का
व्यवाहरिक फलसफा तो मैं कभी सीख ही नहीं पाया l
मेरा तो मानना है कि हमारे समय के लोग निहायत दकियानूस थे l उन्हें प्यार के
सैद्धांतिक पक्ष का तो पता था l उसकी मीमांसा करना भी खूब आता था lथियोरी में हमारी
प्रतिभा असंदिग्ध थी पर प्रेक्टिकल में मामला शून्य से ऊपर कभी नहीं गया lसंत वेलेंटाईन ने
अपने इस नए अवतार में आकर चमत्कार कर दिखाया है l वेलेंटाइन डे विरोधियों के लिए बुरी खबर
यह है कि लाख पहरे बैठाने के बावजूद वह युवा दिलों में अपनी आमद ज़रूर दर्ज करेगा lवेलेंटाइन समर्थकों
के लिए खुशखबरी यह है कि वेलेंटाइन के साथ अब अरबों खरबों का बाजार है ,उसके आगमन
को रोक पाना किसी भी नैतिकतावादी के बूते की बात नहीं l
आओ ,संत वेलेंटाइन आओ ,स्वागत है तुम्हारा l यदि संभव हो तो उन निर्धनों ,दलितों
,शोषितों ,पीड़ितों की जिंदगी और नफरत से
बजबजाती बस्तियों में भी आना जहाँ सदियों से तुम्हारे आने का इंतज़ार हो रहा है l
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