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सोमवार, 27 जून 2011

मेरा शहर उदास है

मेरा शहर उदास है
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                    आजकल मेरा शहर उदास है|हर गली -मोहल्ले में फैली बेचैनी को अनुभव किया जा सकता है |फिजा में गहरे अवसाद की गंध है|बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम घोषित हो चुके हैं |वे मेधावी छात्र जो बोर्ड परीक्षाओं में अच्छे अंक हांसिल कर फूले नहीं समा रहे थे ,अब हताश हैं|इनमें वे छात्र भी हैं जिनकी अंकतालिकाओं को लेकर वे  संस्थान जिनमें ये पढ़ते थे ऐसे प्रचारित करते दिखाई दे रहे थे जैसे कोई शिकारी अपने आखेट के साथ चित्र उतरवाता हुआ गौरवान्वित होता है |
एक   विश्वविद्यालय के प्रमुख और नामवर कालेजों ने जब दाखिले के लिए पहली कट आफ लिस्ट जारी की तो पता चला कि अंक प्रतिशतों का कोई पहाड़ एवरेस्ट से भी ऊँचा हो सकता है |वहां के एक कालेज ने तो दाखिले के लिए न्यूनतम आहर्ता  १०० प्रतिशत घोषित कर अपने  नाम ऐसा विश्व कीर्तिमान कर लिया जिसका अटूट बना रहना तय है |अब तो  यह बात सबको पता लग ही  गई कि यदि प्राप्तांक प्रतिशत ९० से कम है और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने की यदि कोई फंतासी आपने  पाल रखी है तो उसे जितनी जल्दी संभव हो अपने समीप की किसी नदी ,तालाब ,नाले ,जोहड़ में प्रवाहित कर देने में ही भलाई है |फर्जी सपने जितनी जल्दी आँखों से निकल जाएँ उतना अच्छा वरना वे आँखों में अरसे तक चुभा करते हैं |
                    वे टीनएजर्स, जिनके पास बेशुमार सपने,अकूत ऊर्जा और खिलखिलाहट  थी ,अनायास ही  यथार्थ की खुरदरी और बेनूर दुनिया के बरअक्स खुद को ठगा -सा महसूस कर रहे हैं|वे नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर जिंदगी के पहले ही रण में उनकी पराजय की यह इबारत किसने लिख दी|वे कौन हैं जिनके पास यह अख्तियार है कि युद्ध की रणभेरी बजने से पूर्व ही नतीजे का ऐलान कर दें |अविभावक परेशान हैं कि अब उनकी संतति के भविष्य का क्या होगा |उन्होंने तो कोई कसर उठा न रखी थी |शिक्षा के इस कुरुक्षेत्र में कामयाबी के लिए अपने नौनिहालों को सधवाने की प्रक्रिया में चूक कहाँ हुई |बच्चा दिल्ली के ब्रांडेड कालेज में प्रवेश पाने में नाकामयाब हो गया ,अब वे उसकी उस अंक तालिका का क्या करें ,जिसे देखते -दिखाते समय उनका कलेजा फूल जाया करता था|
                   माँ -बाप उदास हैं तो बच्चे भी उदास हैं |इस समस्या से जूझ रहे घरों में मातम पसरा है|पास पड़ोस में भी माहौल ग़मगीन है |गली में रात-दिन धमाचौकड़ी वाले बच्चे भी सहमे हैं |उनको ये तो नहीं पता कि हुआ क्या है ,पर उन्हें भी आभास है कि मामला गंभीर है |मार्निंग वाकर्स के बीच चर्चा का एक ही बिंदु है कि किसके बच्चे को दाखिला मिला और कौन चूक गया|सारी बात दबी जुबान में ऐसे  होती है कि किसी अवांछनीय तत्व के कानों में बात न पड़ जाये|अपनी आदत से मजबूर एक मार्निंग वाकर ने बुलंद आवाज़ में कह दिया कि आप लोग तो ऐसे फुसफुसा कर बतिया रहे हैं जैसे किसी पड़ोसी की९५ प्रतिशत अंक पाने वाली  लड़की पड़ोस के किसी ६० प्रतिशत अंक प्राप्त  शोहदे के साथ फरार हो गई हो |यह सुनते ही अनेक उंगलियां उठीं और होठों पर जाकर टिक गईं और पोपले मुहों से शू-शू की आवाज़ निकली |पर बुलंद आवाज़ ने तब तक दूसरा जुमला हवा में तैरा दिया -पाकिस्तान का  ज़रदारी तो अपने देश में केवल १5 प्रतिशत लेकर पहले मिस्टर १० परसेंट के ख़िताब से नवाज़ा गया था और अब वहां का राष्ट्रपति बना बैठा है |हमारे मुल्क में तमाम लोग ५ से २५ प्रतिशत कमीशन ले -दे कर मज़े कर रहे हैं |उनकी अंक तालिका तो कोई नहीं देखता |उसकी यह बात सुनते ही एक ठहाका हवा में गूंजा |तब पता लगा कि बिना लाफिंग क्लब ज्वाइन किये बिना भी हंसना संभव है |
                  सत्ता के शिखर पर विराजमान लोग हर साल हमारी संतति के साथ ऐसा ही मजाक करते हैं और अपने निरापद भवनों में बैठ कर हमारी  बेबसी पर दिल खोल कर हंसा करते हैं |यही वजह है कि सत्ता के शिखर पर आसीन लोगों को कभी किसी ने किसी लाफिंग क्लब में आते -जाते नहीं देखा |उनके पास हँसने के मुद्दे ही मुद्दे हैं और हमारे पास ....?

                     
 
                

                   

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