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बुधवार, 15 जून 2011

बदलते मौसम में हठयोग


                                   गर्मी का मौसम है .सूरज अपनी फितरत के अनुसार दिन भर सुइयां बरसा रहा है .हम हठयोगी हँसते -हँसते इस चुभन को भी झेल लेते हैं .इसे आप चाहे विकल्पहीनता कहें  या कुछ और पर मेरे शहर का हर आम आदमी जिन्दा ही इसलिए है क्योंकि वह जिन्दा रहने के लिए अपने हठयोग के प्रति आस्थावान है .उमस भरी गर्मी में जब रात के समय बिजली घंटों के लिए नदारद हो जाती है और कटखने मच्छरों का चौतरफा हमला होता है ,तब उस भीषण स्थिति में केवल हौंसला ही कारगर होता है .जब  बच्चे  गर्मी और  मच्छरों के दंश से बिलबिलाते हैं और संपन्न पडोसी के घर में लगा जेनरेटर काला धुआं उगलता वातावरण को खौफनाक चीत्कार से भर देता है तब भी कुपोषण की शिकार माओं की लोरियों  का स्वर मद्धम नहीं पड़ता.यही तो है हठयोग जिसके चलते विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन चलता रहता है .
                                     निरंतर बढ़ती आद्रता की मिकदार और कभी -कभी पड़ जाने वाली बारिश की बौछारें यह आस जगाएं हैं कि कुछ ही दिन की तो बात है जब आसमान में काले कजरारे मेघ उमड़ेगें और बारिश की ठंडी -ठंडी बूंदों से प्यासी धरती गमक उठेगी.मानसून के आगमन की पदचाप सुनाई दे रही है .पाकिस्तानी शायरा परवीन शाकिर की यह नज़्म बार बार ज़ेहन में कौंध जाती है -मैं क्यों उसको फोन करूँ /उसके भी तो इल्म में होगा /मौसम की पहली बारिश है.                                                                                       गर्मी है तो बारिश का बेसब्री से इंतज़ार है .वह तो  जब आयेगी तब आयेगी ,पर यह इंतज़ार भी क्या खूब शै है .रूमानियत से लबरेज ,अपने माज़ी को बेपर्दा  और रूह तक को तरबतर कर देने एक खूबसूरत शिगूफा .इंतज़ार ही तो है आस का दूसरा नाम.यही तो है  हमारी प्रार्थनाओं के संभावित सुफल की मरीचिका.हठयोगियों के मनोबल को सुदृढ़ करने वाली वास्तविक वज़ह.कल जो होगा आज से बेहतर होगा ,इसी दर्शन के सहारे तो जिन्दा रहने के लिए न्यूनतम साधनों के अभाव के  बावजूद करोड़ों लोग निरंतर संघर्षरत और  जिंदा हैं.
                               मानसून केरल में  नियत समय से पूर्व आ गया था .मुम्बई को भी समय से पहले ही आकर भिगो चुका है.जानकार लोग बता रहे हैं कि धरती के इस भू भाग पर जहाँ मेरा शहर अवस्थित है वहां भी समय पूर्व अपनी आमद दर्ज करा कर सबको ऐसे चौंका देगा जैसे कभी नौचंदी एक्सप्रेस ट्रेन नियत समय पर सुबह मेरठ पहुँच जाये.सबको अब बारिश का बड़ी शिद्दत से  इंतज़ार है,भले ही वह आकर दिल ही तोड़ दे.बेगम अख्तर ने बरसों पहले गाया था -सोचा था इस बार बरसेगी शराब /बरसात आई तो दिल तोड़ दिया.पता नहीं किस शायर ने किस मुगालते में यह शेर कह दिया था ,यदि किसी बरसात में ऐसा हो जाये तो तमाम शराब व्यवसायिओं  का दिल और आर्थिक हालात का चरमराना तो तय है.यह शेर सरकार की आबकारी नीति पर भी करारा प्रहार है ,इसलिए इस शेर के  रचियेता और गायिका पर देशद्रोह का मुकदमा कायम हो सकता है.
                             गर्मी के बाद बरसात का आना तो निश्चित है पर जब वह आयेगी तो सारी रूमानियत हवा हो जायेगी.निचले इलाकों में घरों में पानी भर जायेगा.दिल्ली रोड जैसी प्रमुख सड़कों पर जलथल समान हो जायेगा.मेरे शहर के लगभग आधे से अधिक रिहाईशी इलाकों में तालाब बन जायेंगे. वहां नादान बच्चे अपने घर के आंगन में कागज की नावें बनाकर नौका दौड़ का आयोजन कर हर्षित होंगे.अविभावक इस बाढ़ को देख जब सिर धुनेगें तब बच्चे तालियों की धुन से जुगलबंदी करेंगे.
                            हम हठयोगी हैं, इसलिए आगामी आपदा को भी ऐसे ही हँसते -हँसते झेल जायेंगे.तब हम  सर्दी की हंसीन गुलाबी रातों के तसव्वुर के साये में खुद को महफूज़ रखेगें.इसी सनातन सोच के साथ हम सदियों से ऐसे ही जीते आये हैं.



                              


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