कहना आसान है पर इस पर यकीन करना मुश्किल कि मेरा शहर वास्तव में स्थितिप्रज्ञ हो गया है |पिछले दिनों हरिद्वार में आयोजित गायत्री महाकुम्भ में आयोजकों की हठधर्मिता और उनके अप्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की अक्षमता के चलते बाईस भक्तों को अपने प्राण गंवाने पड़े|लेकिन इस खबर को जानने के बाद अतिसंवेदनशील श्रेणी के इस शहर में न तो कोई हलचल हुई ,न कोई शोकसभा और न ही किसी सामजिक संस्था ने अपने घडियाली आंसूओं में भीगा हुआ कोई बयान जारी किया |अलबत्ता मेरे व्यथित होने पर एक भावुक सज्जन ने मुझे एक बोध कथा अवश्य सुनाई जिसका सार यह था कि कभी -कभी कोई नाव कुशल नाविक के परिचालन के बावजूद शांत जल में इसलिए डूब जाया करती है क्योंकि उस नाव में दैवयोग से एक पापी भी सवार होता है|एक पापी के सामने कुशलतम नाविक की कार्यकुशलता और अनेक सदाचारी सहयात्रियों का जीवन होम हो जाता है |उनका कहना था कि गायत्री परिवार का सद्कर्म, हो न हो ,किसी पापी की उपस्थिति की वजह से ही अकारथ हुआ होगा |
निसंदेह अखिल भारतीय गायत्री परिवार के संस्थापक प्रज्ञापुरुष आचार्य श्रीरामशर्मा युगदृष्टा मनीषी थे |उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष ,आध्यात्म विज्ञानी ,योगी दार्शनिक ,मनोवैज्ञानिक लेखक ,सुधारक ,दृष्टा और निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी का समन्वित रूप था |उनकी जन्मशताब्दी पर आयोजित इस गायत्री महाकुम्भ पर जो हुआ, उससे उनकी पवित्र आत्मा भी ज़रूर लज्जित हुई होगी |सूचना तो यह है कि जब भगदड़ के चलते चारों ओर मर्मान्तक चीखों से वातावरण गहन पीड़ा से भरा था तब उनके चेले 1551 कुंडीय यज्ञ में आहुति देने और गायत्री मन्त्र के उच्चारण में ऐसे निमग्न थे कि उन्होंने उन चीखों को सुना ही नहीं या सुनकर अनसुना कर दिया |उनके लिए तथाकथित विश्वकल्याण के लिए आहुति और मंत्रोच्चार इतना अधिक महत्वपूर्ण था ,जिसके सामने महज बाईस लोगों की मौत का कोई मूल्य नहीं था |यज्ञ निर्विघ्न पूरा हुआ ,विश्व सुरक्षित हुआ ,तमाम वीआईपी आये ,आयोजक उनके बगलगीर हो लिए ,परिवार की कीर्ति की दुन्दुभी बज उठी ,धर्म की पताका खूब लहराईं|भक्त आये और खूब आये ;पूर्ण भक्तिभाव से आये ,भक्तिरस में सराबोर होकर गए |कुछ जिन्दा वापस घर नहीं जा सके तो क्या ,महान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किसी को तो बलिदान करना ही था |
संभवतः मेरे शहर के लोग पर्याप्त परिपक्व हो चुके हैं ,उन्होंने मान लिया है कि धर्मकर्म के मसलों में सर्वश्रेष्ठ भूमिका मूक दर्शक की होती है |वैसे भी मेरा शहर आसन्न विधानसभा चुनावों की आहट सुन पा रहा है |इस लोकतान्त्रिक महापर्व से एन पहले व्यर्थ के स्यापे करके सारा मजा किरकिरा कोई क्यों करे |मेरे एक विद्वान मित्र ने कहा -वहाँ मरने वाले भक्त नहीं अंधभक्त थे |उनका यह कथन लगभग सारे शहर की मानसिकता की निशानदेही करता है |अतीत में हम अपनी अपनी धार्मिकता के साये में इतना लड़भिड चुके हैं कि अब हमारी और अधिक लड़ने की इच्छाशक्ति का समापन हो चुका है |हमारे इस साम्प्रदायिक जुझारूपन पर सारी दुनिया इतना थू -थू कर चुकी है कि यदि दुनिया के सामने ऐसे ही किसी मसले पर आगामी दस बीस बरसों तक दुबारा थूकने की की ज़रूरत पेश आई तो उसके सूखे हुए मुह से गर्र-गर्र की आवाज़ ही निकलेगी |
मुझे नहीं पता आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित उनके हजारों सारगर्भित सुभाषितों को उनके भक्तों ने कितना पढ़ा है और उन्हें पढ़ कर अपने जीवन मे उतारने की कितनी गंभीर कोशिश की है |उनके देहवसान के केवल इक्कीस वर्षों के भीतर उन्होंने उन्हें एक मनीषी से इतर एक कल्टफिगर बना कर अपने -अपने स्वार्थों की निजी दुकानें खोलने की जल्दबाजी की है |यदि कुछ लोग आचार्य के इस दिव्य उक्ति को बिसरा बैठे हों तो उन्हें याद दिला दूं ,उन्होंने कहा था -अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई नहीं हो सकता |
आचार्य श्री राम शर्मा ने यह भी लिखा था -अपनी प्रशंसा स्वयं न करें ,आपके कृत्य यह काम दूसरों से खुद करवा लेंगे |उन्हें किसी आडम्बर की आवश्यकता जीवनपर्यंत नहीं पड़ी ,इस शातब्दी वर्ष में क्या हम उन्हें अधिक शालीन तरीके से स्मरण नहीं कर सकते थे |
उनकी ही लिखा एक अन्य सुभाषित भी काबिलेगौर है –दुःख का मूल है पाप |पाप का परिणाम है –पतन ,कष्ट ,कलह और विषाद |यह सब अनीति के अवश्यंभावी परिणाम है |
निर्मल गुप्त
@ दुःख का मूल है पाप |पाप का परिणाम है –पतन ,कष्ट ,कलह और विषाद |यह सब अनीति के अवश्यंभावी परिणाम है |
जवाब देंहटाएंउत्तम विचार।
सद वचन भी कहे सद्कर्म भी करे पर चेलों का क्या करें ? जिन्होंने कबीर के मरते ही उसकी अंतिम संस्कार पर बबाल खड़ा कर दिया था |विरासत में गद्दी लपक ली जाती है विचार बिसार दिए जाते हैं |नागरिकों की मानसिकता पर न रोयें ये शहर हादसों को झेल लेने का आदी है |
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