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शुक्रवार, 9 मार्च 2012

जा बारी साईकिल फुल्ल



उसे सब गोबर के नाम से जानते हैं |दरअसल उसका नाम क्या है ,इसका पता किसी को नहीं |सड़क के किनारे लगे एक नीम के पेड़ के नीचे उसकी स्थाई दुकान है |जहाँ वह साईकिल मरम्मत का काम करता है | वह कब से यहाँ है और कहाँ से आया ,इसके बारे में भी किसी को कुछ नहीं पता |उसके अटपटे नाम के कारण यह पता लगाना मुश्किल है कि वह जन्मना   किस मजहब ,जाति ,उपजाति या प्रजाति का है |मेरे शहर में गोबर जैसे हजारों हैं ,जिनका होने का संज्ञान यह शहर कभी नहीं लेता| यही वजह है कि उसके पास न तो मतदान पहचान पत्र है और न कोई ऐसा पुख्ता सबूत कि जिससे पता चल सके कि वह इसी शहर का एक जीता जगता सांस लेता बाशिंदा है | इसके बावजूद वह इस शहर की नब्ज़ को खूब जनता है और इसकी फिजा में होने वाले मामूली से बदलाव को तुरंत भांप लेता है |वह तो जाने कब से कह रहा था –जा बारी साईकिल फुल्ल ,लेकिन सबने उसके कहे को अनसुना किया |कोई उसकी इस भविश्योक्ति  को सुनता भी कैसे ,सबके कानों में उनके पूर्वाग्रहों  के  बातून परिंदों ने  घोंसला जो बनाया हुआ था |
         गोबर पर तो मानो दीवानापन सवार था उन दिनों ,जो भी उसके पास अपनी साइकिल में हवा भरवाने आता तो वह पम्प से साइकिल की टयूब में हवा फूंकता हुआ टेर लगाये रहता ,करा लो ,करा लो हवा फुल्ल|जा बारी तो साइकिल फुल्ल |तब उसकी कही को किसी ने न सुना |सब आते अपनी साईकिल सुधरवाते ,कुछ देर नीम के पेड़ के नीचे बैठ कर सुस्ताते और चल देते अपने रास्ते |हर बार साईकिल में हवा भरने की मशक्कत में उसकी सांस फूल जाती तो वह फिर ढेर –सारी हवा अपने मुहँ में इस तरह  भरता मानो उसके भीतर भी कोई साइकिल का पहियां टिका है ,जिसकी हवा दुरुस्त करना ज़रूरी हो |
          एक दिन उसकी दुकान पर हाथीवाले बाबा चले आये ,परेशानहाल एक खटारा साइकिल को खींचते |आते ही साइकिल पेड़ के तने से टिकाई और वहीँ जमीन पर लगभग लेट गए |गोबर ने हाथी वाले बाबा का हाल देखा तो फिस्स से हंस दिया |पूछा –महाराज ,आपका हाथी कहाँ गया ?बाबा ने बताया कि हाथी को शहर में लाने पर पाबन्दी ही ,इसलिए जंगल में रख छोड़ा है |जब हाथी नहीं तो धंधा बंद |हम तो मर गए भूखे |खुद क्या खाएं और क्या हाथी को खिलाएं |बाबा को  गोबर ने दिलासा दिया  |उसने बाबा से कहा –बस कुछ दिन की बात और है ,सब ठीक हो जायेगा |तसल्ली रखो और लो ये बीडी में  सुट्टा लगाओ ,प्रभु के गुण गाओ|जा बारी तो साईकिल फुल्ल|उसकी इस बात पर बाबा ने अचकचा कर उसे देखा फिर अपनी साइकिल पर सवार हो कर चल पड़े |बाबा के जाते ही गोबर ठट्टा कर हंसा और टेर लगाईं –हाथी है जंगल में गुल ,जा बारी तो साइकिल फुल्ल |
          गोबर की दुकान ऐसी जगह स्थित थी जहाँ से शहर के विभिन्न स्थानों की ओर जाने वाली पांच सड़कें फूटती थीं |इसी कारण उसकी दुकान पर किस्म –किस्म के लोग आ जाते थे |कोई अपनी साइकिल में दम भरवाने के लिए रुक जाता तो कोई अपनी पंक्चर साइकिल को ठीक करवाने के लिए |रामखिलावन भी उसका स्थायी  ग्राहक है ,वह रोज सवेरे फूल से भरा टोकरा लेकर फूल मंडी जाता तो पल दो पल के लिए उसके पास रुक जाता |एक दिन आया तो बेहद परेशान |उसके चेहरे की घड़ी सुबह के सात बजे ही बारह बजा रही थी |गोबर ने उसकी ओर देखा और कुछ पूछता कि वह खुद ही शुरू हो गया |भईया गोबर ,अबकी चुनावों के समय में भी कोई फूलों का उठान  ही  नहीं है |यह सुनकर गोबर हंस कर बोला –ऐसा हो जाता कभी –कभी |फूल को जाओ भूल ,जा बारी तो साईकिल फुल्ल |रामखिलावन को उसकी बात कतई समझ में नहीं आई |वह उससे राम –राम कर आगे बढ़ लिया |
          गोबर हर आते –जाते को बात बेबात बताता रहा –जा बारी साईकिल फुल्ल |उसने तो उस मजमे वाले को  आगाह किया था जो हाथ की सफाई के ज़रिये जादू दिखाने का रोज़गार करता था |उसने तो उससे भी कहा –कोई और धंधा कर ले भाई |जा बारी तेरा  कुछ होना नाहीं |ये बात उसने हैण्ड पम्प मिस्त्री से भी कही , गुब्बारा बेचने वाले से भी,गैस सिलेंडर सप्लाई करने वाले से भी ,आइसक्रीम की रेहडी लगाने वाले से भी,राजनीति शास्त्र के विद्यार्थियों से लेकर स्वतंत्र टिप्पणीकारों ,चुनाव पंडितों ,अखबारनवीसों तक सबसे |पर उसकी बात किसी ने नहीं सुनी |
                 अब सब कह रहे हैं कि चुनावी नतीजे चौंकाने वाले रहे |गोबर तो  उनकी बात सुनकर हैरान है|


        

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