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गुरुवार, 19 जुलाई 2012

डर्टी डर्टी कितनी डर्टी !!!



दैहिक उत्तेजना से भरपूर रोमांचक आभासी दुनिया के बाशिंदों के लिए एक अच्छी खबर है कि अब डर्टी फिल्म बुद्धू बक्से में प्रकट होगी |नैतिकतावादियों के लिए संतोष की बात यह है कि सेंसर बोर्ड ने काट छांट कर ,धो पोंछ कर ,उसकी गंदगी को बुहार कर उसके  डर्टी अंश साफ़ कर दिये हैं |इस  साफ़ सुथरी फिल्म से अब हमारे मुल्क के चाल, चरित्र और चेहरे पर कोई कालिख पुतने वाली नहीं है |हमारी सरकार हमेशा चारित्रिक सबलता की पक्षधर रही है |वह भ्रष्टाचार को एक ऐसी आवश्यक बुराई मानती है जिसका होना लोकतंत्र की सेहत के लिए ज़रूरी है |उसका मानना है कि एक बार चारित्रिक पतन हुआ तो उसका कोई निदान नहीं,घोटालों की कम से कम  भरपाई तो  हो जाती है |धन तो हाथ का मैल होता है |एकबार हाथ धोए नहीं कि हो गए  साफ़ सुथरे  |
रोमांचवादियों को भी अब तक पता लग चुका है कि जो डर्टी फिल्म टीवी पर दिखाई जायेगी उसमें देखने दिखाने और छिपने छिपाने लायक कुछ होगा ही नहीं |वह तो कुछ वैसी  होगी जैसे कोई सनी लिओन के नाम के मोहपाश में बंधा उसके दीदार को जाये और उसे उसकी नामधारी कोई अन्य महिला भजन कीर्तन करती मिल जाये |रोमांचवादियों का स्पष्ट अभिमत है कि सरकार हो या सेंसर बोर्ड दोनों आमआदमी को कभी कभार मिल जाने वाले हर अस्फुट सुख से कुढते हैं |सरकार को आम आदमी का बीस रुपये की आइसक्रीम खा लेना जघन्य अपराध लगता है और सेंसर बोर्ड को कमोबेश प्रत्येक उस दृश्य पर आपत्ति होती है ,जिसे देख कर देखने वाले के मन में कुछ कुछ होने लगता है |सरकार तो आमआदमी के हर मासूम सपने तक को देशद्रोह मानती आयी है |
नैतिकतावादियों की तो बात ही कुछ और है |वे इस मृत्युलोक में विचरण करते हुए सदैव देवलोक में रहते हैं |उनके लिए यह संसार नश्वर ,पानी केरा बुदबुदा ,कागज की  पुड़िया  (जो  पानी की बूँद पड़ते ही घुल जाती  है),निस्सार और समस्त प्रकार के दुखों का कारक है |देवलोक में वे सभी राजसी सुविधाएँ होती हैं जिनका उपभोग राजा रजवाड़े सामंत धनाढ्य जमींदार ,ब्रांडेड धर्मगुरु ,मठाधीश, गद्दीनशीन सत्तासीन आदि इसी धरती पर जीते जी करते हैं |लेकिन आमआदमी के लिए इस धरती पर उनका उपभोग निषेध है |ये सुख उन्हें मृत्यु उपरांत परलोक में तभी मिलते हैं जब वे इहलोक में सप्रयास कष्टों का वरण और सुखों का तिरस्कार करते हैं |इसीलिए वे इस धरती पर जब तक रहते हैं सदैव खुशियों के खिलाफ मौखिक जंग लड़ते रहते हैं |
रोमांचवादियों और नैतिकतावादियों के अतिरिक्त एक और वर्ग भी है जो सदैव इसी असमंजस में रहता है कि वे इस दुनिया में अधिकाधिक सुख बटोरें या परलोक सुधारने में संलिप्त हों |ये न्यूनतम जोखिम उठाकर अधिकतम मुनाफा कमाने की जुगत में रहते हैं |इनको फिल्मों का डर्टी पक्ष बड़ा लुभाता है पर उसे वे देखते हैं चुपके चुपके |डर्टी पिक्चर के खिलाफ जब कोई मोर्चा निकलता है तो वे अग्रिम पंक्ति में रहते है ताकि उनकी सद्चरित्रता सार्वजानिक रूप से प्रमाणित  हो जाये |वे  हमेशा लाभ की स्थिति में रहते हैं |इनका इहलोक चाक चौबंद रहता है और परलोक में पांच सितारा  सुविधाओं वाली बर्थ आरक्षित रहती  है|
 सेंसर की कतर-ब्योंत के बाद प्राईमटाईम इस फिल्म के दर्शक कहेंगे –डर्टी डर्टी कितनी डर्टी ?नो नो :नो नो यह नहीं डर्टी | अब हम इसमें देखें क्या ?


1 टिप्पणी:

  1. ताकि उनकी सद्चरित्रता सार्वजानिक रूप से प्रमाणित हो जाये |वे हमेशा लाभ की स्थिति में रहते हैं |इनका इहलोक चाक चौबंद रहता है और परलोक में पांच सितारा सुविधाओं वाली बर्थ आरक्षित रहती है|............सटीक कही सर जी ..आज के हालत पर इस कस्माहत से ...हुम्लोगिन का फ्रस्ट्रेशन है ...ये बात किसी से छिपी नहीं है ....पर ...हालत ये की हाथ में कुछ नहीं ....पर ...इन सब को दिमाग दरवाजा खुला रखने की नसीहत हम जेसे ही देते रहे ...चे कण में रूपी डाले ...पर दीखता तो हे ही ....आज नहीं कल आपने कर्मो को भुगतने के लिए तेयार रहना होगा ...ये शास्वत है ///Niraml Paneri

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