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गुरुवार, 18 अगस्त 2011

सरकार -अन्ना का पन्द्रहदिनी टेस्ट मैच शुरू



इस मामले में मुझे कोई भ्रम नहीं है कि मैं अन्ना हजारे हूँ .मेरे पास अपने अन्ना होने का ऐलान करती न तो  कोई टोपी या टीशर्ट या फिर अंगवस्त्र ही है.मेरे पास अपने माँ -बाप का दिया एक अदद  साफ सुथरा शुद्ध स्वच्छ पारदर्शी नाम है ,जिसके जरिये लोग मुझे जानते और पहचानते हैं.उम्र के इस पड़ाव पर इस नाम को यदि बदलना भी चाहूं तो यह एक दुष्कर काम होगा.इसी नाम के साथ जीना और सभवतः मरना भी मेरी नियति है.शेक्सपियर ने पता नहीं क्या सोच कर कहा होगा कि नाम में क्या धरा है ,पर अनुभव बताता है कि आदमी के भूत भविष्य और वर्तमान में नाम की उपस्थिति अपरिहार्य रूप से रहती है.वह जब तक जीता है ,तब तक नाम उसके साथ चाहे -अनचाहे चिपका रहता है और मरने के बाद भी नाम जीते जी किये गए कृत्यों -दुष्कृत्यों के जरिये अपनी उपस्थिति को गाहे बगाहे दर्ज कराता रहता है.
सत्ता के गलियारों में पिछले तीन माह से अन्ना हजारे के नाम की आंधी चल रही है ,जिसकी धमक मेरा शहर भी पूरे देश के साथ महसूस कर रहा है .उनकी राष्ट्रीय पटल पर मौजूदगी यह अहसास जगाने में कामयाब है कि पड़ौसी घरों में बलिदानी संघर्षशील जुझारू लोगों ने जन्म लेना अभी बंद नहीं किया है.तमाशबीन मानसिकता खुद खेल से बाहर रह कर केवल ताली बजाने में ही आनंदित होती है.दूसरे के घर जन्मा भगत सिंह हमें गौरान्वित करता है और दैवयोग से अपने घर में यदि ऐसा कुछ हो जाये तो लगता है मानो अनर्थ हो गया हो.इसीलिए ही यह नारा गली -गली गूँज रहा है -अन्ना तुम संघर्ष करो ,हम तुम्हारे साथ है.अन्ना तुम अनशन करो ,जब तक संभव हो भूखे रहो,अपनी जान गवां सकते हो तो गँवा दो ,हम भरपेट अघाये हुए लोग तुम्हारे साथ हैं.जब तक तुम जियोगे जयकार करेंगे .यदि मरखप गए तब तुम्हारी समाधि पर फूल बरसाएंगे.इस काम में हमने न कभी कोई कोताही की है ,न कभी करेंगे.यही वह काम है ,जिसे हम बखूबी जानते हैं.सदियों को अभ्यास है हमें इस काम का.
अन्ना आमरण अनशन पर हैं .दिल्ली पुलिस ने  उन्हें अनशन के लिए रामलीला मैदान पन्द्रह दिन के लिए दे दिया है.दिल्ली पुलिस ने जो सदाशयता दिखाई है ,वह सराहनीय है.सरकारी सोच भी यही है कि अन्ना की पन्द्रह दिन की भूख आखिर किसी का क्या  बिगाड़ लेगी?सत्ता के अहंकार में आकंठ डूबे ,मोटे भत्ते पगार और कमीशन आदि को उदरस्थ कर  डकार पर डकार मारते लोगों से भूख से निढाल हो चुकाकुपोषण का शिकार एक शरीर आखिर कब तक लड़ेगा?एक बड़बोला नेता तो साफ़ -साफ़ कह चुका है -अन्ना भले आदमी हैं पर आत्महत्या पर क्यों उतारू हैं.
अन्ना देश से भ्रष्टाचार के समूल नाश के लिए अभियान चलाये हैं और हमारा हर छोटा -बड़ा नेता उस जादुई छड़ी को ढूँढ रहा है,जिससे सांप भी मर जाये पर लाठी न टूटे.जिसके माध्यम से कुछ ऐसा हो सके कि भ्रष्टाचार भी निर्बाध गति से चलता रहे ,पर तमाम चिंतातुर आँखों के आगे ऐसी धुंध छा जाये कि वह देखने पर भी दिखाई न दे.लेकिन लाल किले के प्राचीर से जो अंतिम खबर आयी थी उसका सार यही था कि बहुत तलाशने पर भी वह जादुई छड़ी मिल नहीं पाई है.तलाश पूरे जोर शोर से जारी है.
फ़िलहाल सारी जाँच एजेंसियां आतंकवादियों की धरपकड जैसे दीगर काम छोड़ कर हर घर ,दफ्तर, गली ,कूंचे, नदी ,नाले, पोखर, तालाब, बाज़ार हाट ,बाग, बागीचे, झोपड़पट्टी, लोगों की जेबों, बच्चों के बस्तों, मंदिरों की  गुल्लकों ,भिखारियों के भिक्षा पात्रों में जादुई छड़ी को ढूँढने के सर्वोच्च  राष्ट्रीय महत्व के काम में लगी हैं.उनके समक्ष इस काम के साथ ये गुरुतर दायित्व भी है कि वे चौबीसों घंटे अन्ना पर इस बात के लिए निगाह रखें कि कोई अदृश्य विदेशी ताकत उन्हें चुपके से कुछ खिलाने न पाए.अब सरकार के पास दो विकल्प हैं या तो अन्ना का आमरण अनशन अपनी नियत अवधि के भीतर अपनी अंतिन परिणिति तक पहुँच जाये या फिर भ्रष्टाचार को धुंध से ढँक देने वाली जादुई छड़ी मिल जाये.
मैंने पहले ही कहा कि मैं अन्ना हजारे नहीं हूँ.मेरे नाम के साथ जुड़ा कोई आभामंडल या प्रभाव नहीं है.इस नाम के साथ कोई खतरा मौजूद नहीं है और तमाशबीन बने रहने की पूरी सुविधा भी है.सरकार और अन्ना के बीच पन्द्रहदिनी टेस्ट मैच जारी है.अपने नाम को बिना बदले या धारण किये इसे पूरे मनोयोग से देखते रहें.



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