मेरठ मेरा शहर है .यह जैसा भी है पर है पर है दिल के आसपास.इसे केन्द्र में रखकर लिखा तो एक किताब बनी -एक शहर किस्सों भरा .यह किताब गरियाई भी गई सराही भी गई .
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रविवार, 22 जनवरी 2012
एक डिप्लोमेसी चुप्पी भरी
मेरे शहर के आराजक ट्रेफिक के बीच निर्द्वन्द्व बाईक़ सवारों और नवधनाढ्यों की तेज़ रफ़्तार कारों के बीच आमआदमी की उम्मीदों भरी साइकिल हमेशा चलती रही है |तमाम पर्यावरण प्रेमियों की ऊब , शासकीय उपेक्षा और लैंड माफियाओं की कुदृष्टि से दैवयोग से बच गए तालाबों में कभी -कभी कमल के फूल भी खिल ही जाते हैं |यह चमत्कार ही है कि आयुक्त कार्यालय के परिसर में बने एक छोटे से पोंड में कमल का फूल चुपके से खिल कर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने में कामयाब होता रहा है |गली कूंचों में लगे हैंडपंप किसी प्यासे को पानी दें या नहीं पर उसे लगवाने वाले की कीर्ति में चार चाँद लगाते शिलापट्ट मौजूद हैं |एक बेचारा हाथी है जिसकी प्रस्तर प्रतिमाएं परदे के पीछे जाने के लिये मजबूर हैं |यह अलग बात है कि यह रूह्पोश हाथी परदे के पीछे रहकर भी लोगों को बेचैन किये है |कहने वाले तो यह कहते सुने गए हैं कि हाथी निकल जायेगा और देखने वाले देखते रह जायेंगे |कुछ लोग का तो यहाँ तक कहना है कि हाथी सबको धता बताकर निकलेगा और विरोधी हाथ मलते रह जायेंगे |वैसे भी इस बेमुरव्वत मौसम की सबसे अधिक मार हाथों को झेलनी पड़ रही है |हाथ की हथेलियों के सामने अजब संकट हैं कि वे आपस में रगड़ कर जिन्दा बने रहने योग्य उष्मा पैदा करें या तालियाँ बजा कर यशप्रार्थी नेताओं की हौसलाअफजाई करें |
एक -एक दिन कर चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं |राजनीतिक अजायबघरों से निकाल कर अपने -अपने दल के प्रतीक चिन्हों को झाड पोंछ कर सलीके से सजाने में लगे हैं |मनभावन लुभावने रसपगे घोषणा पत्रों से इनका श्रृंगार और प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है |सबको मालूम है कि अंततः मतदान के दिन नाम गौण हो जाते हैं और चुनाव चिन्ह ही सत्ता या गुमनामी के अंधकार की ओर जाने वाले किसी एक रास्ते के वाहक बनते हैं |मतदाताओं को पता है कि इस चुनावी सर्कस में उनकी अधिकतम भूमिका मुफ्त कम्प्लीमेंटरी पास के जरिये पंडाल में प्रवेश पा जाने वाले उस दर्शक से आधिक नहीं है जिसे कलाकारों के हैरतअंगेज करतब देखने और वक्त ज़रूरत तालियाँ बजाने के लिए बुलाया जाता है |बहरहाल ,अभी तो पंडाल के लिए आवश्यक खूंटे गाड़े जा रहे हैं |समस्त कलाकार अपने करतबों के निर्दोष प्रदर्शन के लिए सतत अभ्यास में लगे हैं |इस सर्कस का मुख्य आकर्षण होगा उस कलाकार का प्रदर्शन जो जीते जागते किसी आदमी को पहले साईकिल ,कमल का फूल ,हैंड पम्प या हाथ में तब्दील करेगा और बाद में देखते ही देखते उसे वोटिंग मशीन में कैद एक डिजिटल आंकड़ा बना देगा |
मेरे शहर में मतदाताओं ने इस बार चुप्पी साध रखी है |उनकी इस मौन डिप्लोमेसी ने सारे राजनीतिक रणनीतिकारों ,विचारकों और विश्लेषकों को हैरत में डाल रखा है |"एक चुप सौ को हराए" का गुरुमंत्र जनता ने अपने उच्चपदस्थ राजनेताओं से सीखा है |वैसे भी ख़ामोशी का एक अपना तिलस्म होता है |वह बड़ी वाचाल भी होती है और बड़ी क्रूर हिंसकऔर षड्यंत्रकारी भी|आधुनिक इतिहास में ऐसे प्रकरण सप्रमाण मौजूद हैं कि जब एक राजनेता ने निरंकुश भीड़ को मध्यकालीन इतिहास के पन्नों में घुस कर उसे रक्तरंजित करने की मौन सहमति दी और मुल्क की सेकुलर सोच के मुह पर स्थाई कालिख पुत गई | लेकिन मेरे मानना है कि मेरे शहर की चुप्पी के पीछे किसी षड्यंत्र का कोई बीज नहीं है |पर यह रीतिकालीन नायिका की मासूम ख़ामोशी भी नहीं |इस ख़ामोशी में मतदाताओं का अपनी राजनीतिक समझ में बालिग हो जाने की आतुरता और एक सुनियोजित जोखिम उठाने का परिपक्व साहस मौजूद है |
मेरा शहर अपने वक्त के ज़रूरी सवालों से मुह चुराती राजनीतिक सोच की कीमियागिरी से उकता चुका है |उसकी अब उस बचकाने खेल में कोई दिलचस्पी नहीं ,जिसमें बाजीगर हाथ की सफाई दिखाकर तमाम बेजान प्रतीक चिन्हों को एक अदद आरामदेह कुर्सी बना लिया करते हैं |अब मौका आम मतदाता के हाथ में है |संभव है कि इस बार नियत दिन वोटिंग मशीन पर उसकी ऊँगली की एक जुम्बिश सारे ओपिनियन पोल के नतीजों को फर्जी साबित कर दे |मतदाता की चुप्पी जब टूटती है तब बड़े से बड़े नामचीन राजनीतिक़ धंधेबाजों के सिर से आसमान नदारद हो जाता है और पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक जाती है |
मित्रो ! यह मेरे शहर की चुप्पी भरी महज पालिटिक्स नहीं बड़ी सोची समझी डिप्लोमेसी है |
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