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रविवार, 1 जनवरी 2012

नए साल के नए सपने


लो आ गया एक और नया साल |एक दुस्वप्न की तरह बीत गया  वर्ष 2011|नए साल में नए सपनों का चयन करना होगा और यह काम आसान नहीं है  |बीते साल में आम जनता के सपनों का जिस तरह मखौल उड़ाया गया ,उसके बाद तो सपनों की बात करने से भी डर लगने लगा है |अब यह तो सभी की समझ में आ चुका है कि सपने देखने का अधिकार केवल कुछ गिने -चुने लोगों को है ,शेष  जनता तो केवल सपनों के कारोबारियों के करतब देख कर विस्मित ही हो सकती है |लाखों करोड़ का घोटाला ,लाखों करोड़ की अट्टालिकाएं ,उनका हजारों करोड़ का इंशोरेंस ,करोड़ों रुपयों का मेहनताना लेकर नए साल के आगमन पर मंच पर लोगों को भरमाती अर्धनग्न नृत्यांगनाएँ,लीटरों शराब पीकर सड़क पर थिरकते युवा ,कानभेदी स्वरलहरी ,अपने पेट की औकात से ज्यादा लज़ीज़ भोजन को उदरस्थ कर सरेराह वमन करते उत्सवधर्मी लोगों द्वारा दी गई विदाई का  गवाह बना  -गुज़रा साल ,2012 के नए लिबास में सामने है ,तब लुटा - पिटा , थका हुआ-सा  भर्मित यह शहर भी पूरे मुल्क के साथ खड़ा यह सोच रहा है कि इस नए साल का वह क्या करे |इस बार तो वास्तव में नए साल को खुशामदीद कहने के लिए शब्दों का टोटा पड़ गया है |
                  अब विधानसभा चुनाव ऐन सिर पर हैं और बहुत से लोगों के लिए नए साल की उत्सवधर्मिता को विस्तार देने का यह एक मौका भी है और दस्तूर भी |विद्वान लोग हमेशा कहते रहे हैं कि देश के सत्ता शिखर पर जाने वाला रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है |यदि यह सच है तो मेरा शहर भी इस  सत्तानुमुख  गलियारे का पड़ाव या हिस्सा ज़रूर है |पर इतिहास गवाह है कि हम अपना प्रतिनिधि चुनते समय अनायास ही साम्प्रदायिकता और जाति-उपजाति को लेकर कुछ ऐसे संवेदनशील हो जाते हैं कि हमारे मूल सरोकार हाशिए पर चले जाते हैं और किसी की चुनावी जीत के साथ हमारी राजनीतिक समझ पर लगा सवालिया निशान और गहरा जाता है |इसके बाद जब हम अपने शहर के विकास की दौड़ में पिछड़ते जाने का स्यापा करते हैं तो हमारी इस मासूम अदा पर बात बेबात पर हँसने के अभ्यस्त लोगों के लिए मुस्कराना भी कष्टप्रद हो जाता है |इस नए साल में ,यदि हम सपना देखना चाहें  ,तो यह आस बांध सकते हैं कि इस बार हम इतिहास को दोहराने के स्थान पर एक नई इबारत दर्ज़ करने वाले हैं |मेरी तरह ही जिन्हें सपने देखने की लाइलाज बीमारी है ,वे ऐसे सपने हमेशा देखते रहे हैं और ठगे भी जाते रहे हैं |लोकपाल मुद्दे पर अन्नावादियों से कोई पूछे कि टूटे हुए सपने केवल आँखों में ही नहीं चुभते ,आत्मा को भी लहूलुहान कर देते हैं |
                  मेरे शहर में चुनाव अभी दो माह की दूरी पर हैं |सभी दल अपनी समझ के अनुसार राजनीतिक बिसात पर मोहरे बिछाने में लगे हैं |सभी के पास चुनावी जीत के वही लिए पुराने उपकरण हैं|सबके पास लोकतान्त्रिक राजनीति की वैतरणी पार करने के लिए किसी न किसी अदृश्य चोर दरवाज़े की एकाधिक  मास्टर -की है |वक्त आने पर इन चोर दरवाज़ों को खोलने में किसकी चाभी कितनी  कारगर होगी ,यह तो वक्त ही बताएगा |मैं इस नए साल में सपना संजोये बैठा हूँ कि इस बार इन चोर दरवाज़ों की चाभियां गुम हो जाएँगी और ये सब हाथ मलते रह जायेंगे |मेरी अपने शहर के सभी शातिर जेबकतरों से अपील है कि वे अपनी प्रतिभा का जनहित में  परिचय दें और सही समय पर इन चाभियों पर हाथ साफ़ कर दें | मेरे सपनों का यथार्थ में तब्दील होना ,इन्हीं लोगों के हाथ में है |मेरे शहर में सपनों के  सच हो पाने का  यही एकमात्र रास्ता बचा रह गया  है  |सारे जायज़ रास्तों पर तो केवल वर्जनाओं की ऐसी नागफनी की उगी हुई  है ,जिनपर खिले फूल भरमाते अवश्य हैं ,पर पास जाने पर सारे इरादों को अपने काँटों से बींध देते हैं |
                 इस बार तो नए साल के स्वागत के लिए सुगन्धित फूलों का मिलना भी दुश्वार हो गया |निर्गंध फूलों की ही बाज़ार में मांग रही और उपलब्धता भी |कुशल कारोबारियों ने अंतत: समाधान निकला और वे असली जैसे नकली सुगन्धित फूलों को ले आये बाज़ार में |मेरे पास पुख्ता खबर है कि ये नकली फूल बिके भी खूब |मैं आशंकित हूँ कि क्या इस बार राजनीति की हाट में भी नकली सरोकारों ,मंतव्यों ,नारों ,रंगे हुए सियारों ,घडियाली आंसूओं ,,रंग बदलने में कुशल गिरगिटों का वर्चस्व रहेगा |इस नए साल में मेरे सपना है कि इस बार हमारी राजनीतिक समझ बहरूपियों को नकार दे और मेरे शहर में तरक्की की ऐसी शुभकामना दर्ज़ हो ,जो किसी भावनात्मक फरेब की मोहताज़ न होगी  |
               
                
                  

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