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शनिवार, 24 दिसंबर 2011

ऐसा हो हमारा एमएलए



अब तक यह तो तय हो चुका है कि इस बार शीतलहर से बचने के लिए गर्म कपड़ों और अलाव जलाने के लिए ईंधन की ज़रूरत नहीं पड़ने वाली क्योंकि विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ मेरे शहर का सारा वातावरण खुदबखुद गरमा जायेगा |फिलहाल चर्चा का विषय यह नहीं है कि हमारा एमएलए कौन होगा ,अभी तो सारी बौद्धिक बहस इस बात पर केंद्रित है कि हमारा एमएलए कैसा हो |इस पर लगभग सब एकमत हैं कि वह चाहे जैसा भी हो पर वर्तमान  जैसा न हो |हमें अपना वर्तमान कभी अच्छा नहीं लगता और जब वह अतीत में तब्दील हो जाता है तो हम उसी की प्रशस्ति के गीत गाने में कभी कोई कोताही नहीं करते |यदि इस बार भी ऐसा ही हुआ तो ऐसे गए गुजरों की कतार में एक और नाम जुड़ जायेगा जिन्हें सामाजिक राजनीतिक हलकों में "चले हुए कारतूस" के रूप में जाना पहचाना जाता है |यह अलग बात है कि हम हमेशा अपने वर्तमान को भूतपूर्व की श्रेणी में धकियाने के बाद पछताते भी खूब हैं |तब यही कहा जाता है कि अब वाले से अच्छा तो वही था ,पहले वाला |यही कारण है कि मेरे शहर में भूतपूर्वों का इतना बड़ा जमावड़ा है और आज की कसौटी में खरा उतरने लायक कोई भी नहीं |इन चले हुए कारतूसों के ढेर में से  एक अदद लाईव कार्टेज़(जिंदा या दागे जाने योग्य कारतूस )ढूंढ  पाना वाकई मुश्किल है |पर अंततः खोज ही लिया जायेगा ,इसका यकीन सबको है |मेरे शहर में लोग भविष्य के सुनहरे सपनों के मुगालतों में जीते रहे हैं   और अतीत की जुगाली करके खुद को आश्वस्त करते  रहे हैं |यही वजह है कि आदमी की सबसे आदिम आंकाक्षा स्वतंत्रता का ध्वजवाहक होने के  अहंकार में आकंठ डूबा यह शहर शायद ही कभी अपने लिए एक सुयोग्य और सुपात्र को  अपना जनप्रतिनिधि चुन पाया है|
                     इस बार फिर अनुत्तरित यक्ष प्रश्न सामने है कि हमारा जनप्रतिनिधि कैसा हो |कोई कह रहा है कि वह सुशिक्षित हो ,कम से कम ग्रेजुएट तो होना ही चाहिए |पर मेरे मानना यह है कि जिस प्रकार यहाँ  शिक्षा की दुकानों पर डिग्रियों की खुली खरीद फरोख्त होती है ,ऐसी स्थिति में ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट या  किसी अन्य डिग्री के होने न होने के बीच फर्क ही क्या है |मुझे अच्छी तरह से याद है कि सत्तर के दशक का एक मेधावी छात्र नेता जब अपनी पांचवी मास्टर की डिग्री की परीक्षा दे रहा था तब वह अचानक परीक्षा कक्ष से बाहर आया और दूर खड़े अपने एक साथी से बोला -अरे ,यह तो बता कि झ -झंडा लिखा कैसे जाता है |बार -बार इसकी ज़रूरत पड़ रही है और मैं तो इसे लिखना ही भूल गया |उसका साथी भागा -भागा आया और उसने उसकी हथेली पर लिख कर दिखाया कि ऐसे बनता है झ से झंडा |उसके साथी ने तब पूछ लिया -इन्वेजिलेटर से पूछ लेता ये तो|छात्र नेता ने तब बताया -उससे क्या पूछता ,वह भी तो हमारे जैसा है |जब पढ़ा होगा ,तब पढ़ा होगा ,अब तो वह भी वैसा ही है जैसे हम |इसके बाद एक ठहाका गूंजा |छात्रनेता की हथेली पर बना झ –झंडा  हमारी पूरी शिक्षा प्रणाली पर प्रश्नचिन्ह बन कर आज तक मौजूद है |
                    कुछ का मानना है कि हमारा प्रतिनिधि सुंदर व्यक्तित्व का मालिक होना चाहिए |कुछ कह रहे हैं कि वह बढ़िया वक्ता हो ,कुछ की दलील विनम्रता से ओतप्रोत दबंग बाहुबलियों के पक्ष में है |कुछ को सभी कुछ चाहिए अपने प्रतिनिधि में |इमानदार भी हो ,धन धान्य से संपन्न भी ,वाकपटु, सुदर्शन, प्रतिभावान ,सद्चरित्र और न जाने क्या क्या |मेरी इस सम्बन्ध में नम्र राय यह है कि इतने सारे गुणों से परिपूर्ण नायक आपको या तो रुपहले सिनेमाई परदे पर मिल सकता है या किसी एनीमेशन फिल्म में या फिर हमारे मंदिरों में विराजे देवताओं के रूप में |मेरे पास यह पक्की खबर है कि इनमें से कोई भी जनप्रतिनिधि का थैंकलेस जाब करने का इच्छुक है और न उनके पास इसे प्राप्त करने की न्यूनतम योग्यता |
                 हालांकि मुझसे अभी तक किसी ने यह सवाल  पूछा तो नहीं है कि आपका एमएलए कैसा और कौन होना  चाहिए,फिर भी मेरे पास इसका उत्तर मौजूद है |मेरे पास इसका सारगर्भित समाधान  है |क्या आपने किसी ऐसे आदमी को देखा है जो केवल हाँ में हाँ मिलाना जानता हो , किसी से भी  असहमत होने में यकीन न रखता हो  और जरूरत पड़ने पर  सहज ही हर किसी से सहमत हो जाता हो |जिसके कुरते में तीन जेबें होती हों और जिसकी एक जेब में वह ऐसी कविता और बयान रखता हो जिसे सुनकर खैरनगर,इमलियान,शाहगासा, ,शाहपीर गेट ,, इस्लामाबाद ,जली कोठी आदि में लोग वाह –वाह कह उठें ;दूसरी जेब में ऐसी रचनायें जिन्हें सुनकर बुढाना गेट ,फूटा कुआँ ,जत्तीवाडा,मोरी पाडा,ब्रह्मपुरी ,लाला का बाजार  आदि के लोग जय श्री राम कह उठें और तीसरी जेब में साम्प्रदायिक सदभाव के ऐसे गीत जिन्हें सरकारी कार्यक्रमों में पढ़ा जा सके |चाहे हालात जो हों ,जिसका पसंदीदा वाक्य हो -सब ठीक हो जायेगा|जो" न काहू से दोस्ती न काहू से बैर "के कबीर मन्त्र में दृढ  विशवास रखता हो |जो छपास रोग का मरीज़ होने के कारण संपादक मित्रों की खातिर अक्सर झूठ को झूठ कहने से परहेज़ कर लेता हो |उधार लेकर भूल जाता हो और अपने पास कभी इतना रखता ही न हो कि किसी को कुछ दे सके | किसी के द्वारा अपमानित किया भी जाये तो मान सम्मान से ऊपर उठकर जीने की कला में पारंगत  हो |यदि आप किसी ऐसे आदमी को जानते हैं या आप उससे मिले हैं तो यकीन जानें वह मैं ही था |वह मैं ही हूँ ,जो आपका जनप्रतिनिधि बनने का उपयुक्त पात्र है |
                 संक्षेप में ,मैं  आपकी भावनाओं का ऐसा आडियो वीडियो प्लयेर साबित हो सकता  हूँ ,जिसमें जो चाहे आपनी चिप या पेन ड्राइव लगाये और बजाये| मैं भी कतार में हूँ |कृपया मुझे भी एक अभूतपूर्व मौका दें |
 निर्मल गुप्त 
मोब.
08171522922

                  

1 टिप्पणी:

  1. मज़ा आ गया.
    विश्लेषण तो बहुत हैं, व्यंग के साधन भी, पर समाधान कहाँ हैं, ढूंढें नहीं मिल रहा है.

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