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शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

उपहारों का व्यापारिक यथार्थ

                 मुझे नहीं मालूम कि मेरे शहर में कितने लोग प्रत्येक दीपावली पर मिलने वाली शुभकामनाओं का लेखा जोखा उनके साथ  प्राप्त होने वाले उपहार की कीमत के क्रम में रखते हैं |लेकिन मैं इस बात को यकीन के साथ कह सकता हूँ कि मैंने कभी शुभकामनाओं की कोई बैलेंसशीट नहीं बनाई |इसका एकमात्र कारण यह रहा कि कभी भी मैं उपहार प्राप्त करने के लिए इतनी सामाजिक राजनीतिक या आर्थिक हैसियत ही  नहीं जुटा पाया कि इसके लिए मुझे  सुपात्र समझा जाता |खालिस शुभकामनाओं की मेरे पास कभी कोई कमी नहीं रही और सच तो यह है कि बिना किसी पर्व के रोज़मर्रा की जिंदगी में भी मेरी जेब में शुभकामनायें ही शुभकामनायें ठूंस -ठूंस के भरी रहती है |प्राय: देखा भी यह गया है जो जेबें करेंसी नोटों से रीती रहती हैं, उनमें उत्साह, उमंग और उल्लास  के भावप्रवण  खाते का ऐसा डेबिटकार्ड  हमेशा विद्यमान रहता है जिसे आपरेट करने के लिए किसी कूटसंख्या (कोड नम्बर )की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती |यह तो ऐसा खुला खज़ाना है ,जिसकी जितनी सामर्थ्य लूट ले जाये बेखौफ |
              मुझे यह बात भी अच्छी तरह से मालूम है कि भौतिकता से जगमगाती इस दुनिया में मेरे इस डेबिटकार्ड का बाज़ार मूल्य कुछ भी नहीं |यहाँ तो वही चलता है जो चमकता है |यह चमक कितनी कृत्रिम है या कितनी खरी ,इस पर सवाल उठाना निरर्थक है |चमक सिर्फ चमक होती है ,उसका औचित्य  या उद्गम ढूँढने की कोशिश बेकार है |यदि अवसर मिले तो इस बार दीपमालिका के पर्व पर गौर कीजियेगा  कि काले धन से खरीदी  गयी आतिशबाजी अमावस्या की अँधेरी रात को कितने नयनाभिराम पेस्टल रंगों से देखते ही देखते भर देती है |इसी धन से खरीदी गयी मिठाई मुहँ में स्वाद की कैसी -कैसी नई परिभाषा गढ़ देती है |ऐसे  धन से लिए गए  उपहारों के साथ आकर्षक शब्दों में लिपट कर जो भावनाएँ यहाँ से वहाँ तक की व्यापारिक  यात्रा तय करती हैं ,वे बड़ी कारगर हुआ करती हैं |उत्सव पर उपहार वही ,जो पाने वाले  दिल जीत ले|तमाम तरह के  ठेकेदारों से लेकर सत्ता के गलियारों के कीमियागारों तक को उपहार के अमोघ अस्त्र के इस्तेमाल की गहन जानकारी है |
              हमारे प्रधान मंत्री हाल ही में जब विदेश यात्रा से स्वदेश लौट रहे थे तो उन्होंने धरती पर अपने पांव टिकाने से पहले ही एक  बयान देश की जनता को दिया -दीपावली पर किसी को कोई उपहार न दें |पूरे जोशोखरोश के साथ खुशियाँ मनाएं पर -नो गिफ्ट प्लीज़ |उनकी यह मशविरा जिनके लिए है वे अब तक इतने उपहार जबरन एकत्र कर चुके हैं कि उनकी दस बीस पीढ़ियों को अब किसी उपहार की ज़रूरत भी नहीं पड़ने वाली .|उन्हें तो बस तिहाड़ से बाहर आकर काले धन के स्वर्णिम अण्डों को अपने धवल पंखों के नीचे छुपा कर   सेने के लिए निरापद स्थान , खाए हुए को ठीक से पचाने के लिए  चहलकदमी कर पाने के लिए पर्याप्त  स्पेस , हृदय रोग,किडनी रोग, लीवर की व्याधि आदि के इलाज  लिए कुछ  निष्णात किन्तु निशुल्क  चिकित्सक़  ,सांस लेने के लिए खुली हवा और जीवाणुरहित पानी   चाहिए  |वैसे भी प्रधानमंत्री ने  कोई नई बात नहीं की है |मुझे याद है लगभग तीन दशक पूर्व भी  एक ऐसा समय आया था जब विवाह ,बर्थडे या अन्य आयोजनों के आमंत्रण पत्रों पर लिखा जाता था कि कृपया अपने साथ उपहार न लायें |उस समय लोगों ने इसका यही मतलब समझा था कि वस्तुतः यह उपहार लाने में कोताही न बरतने या उसे विस्मृत न  करने का  आग्रह है |निमंत्रण पत्रों पर यह इबारत छपती रही और लोग बकायदा उपहार लाते रहे |न देने वाले को कोई झिझक हुई और न लेने वाले  का मन मलीन हुआ |बाद में पता नहीं कब यह इबारत गायब हो गयी और उसकी जगह किसी तुतलाते बच्चे का उसके  चाचा या बुआ की शादी में "जलूल जलूल" आने  का इसरार छपने लगा |ये परिपाटी आज तक कायम है |कुछ दूरदर्शी लोग तभी समझ गए थे कि कैश से कारगर कुछ नहीं ,जिसे न लेता भूले, न देता विस्मृत करे |
              शुभकामनाओं के इस कारोबारी समय में आप चाहें तो मेरी लिखी इन बातों को एक थके- हारे निराश आदमी की भड़ास मान कर सरलता से दरकिनार कर सकते हैं लेकिन यदि आप का मन ही  कभी आपसे ऐसे   सवालों को पूछने लगा तब क्या करेंगे ?
              आप सभी  अज्ञान, अहंकार, अशिक्षा ,भ्रष्टाचार ,साम्प्रदायिकता, जातीय विद्वेष और अँधेरे के खिलाफ कुछ  दियों के एकाकी युद्ध  के मात्र साक्षी नहीं सक्रिय भागीदार बनें|यही कामना है |जब आपके हाथ उपहार देने- लेने के दायित्व से मुक्त हो जाएँ तब दीपावली के पर्व पर  मेरी हार्दिक  शुभकामनाएँ स्वीकार कर लीजियेगा | 
निर्मल गुप्त            

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