प्यार की इस जंग में
प्यार और जंग में सब जायज़ होता है -यह एक पुराना मुहावरा है |इस मुहावरे से घोर असहमति के बावजूद हम इसे बार -बार दुहराने के लिए विवश हैं |इसकी वज़ह यह है कि हम चाह कर भी प्यार की स्वायत्त सत्ता के लिए इस धरती पर स्थान खोज पाने में असमर्थ हैं | केवल इतना ही नहीं प्यार और जंग जैसे विपरीतार्थी शब्दों के मध्य खिंची सीमा रेखा ही अब विलुप्त होती जा रही है |प्यार की दुनिया में जंग के उपकरणों का उपयोग अब एक ऐसा सामजिक यथार्थ है ,जिससे नकार पाना संभव नहीं |पिछले कुछ अरसे से खाप पंचायतें अपनी बर्बर न्याय प्रणाली के माध्यम से यही स्पष्ट सन्देश देने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं कि इक्कीसवीं शताब्दी में भी वह मध्ययुगीन सोच बरक़रार है जो प्यार की दैहिक अभिव्यक्ति को सुचारू सामाजिक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानती है| प्यार की मौखिक और शाब्दिक अभिव्यक्ति पर हमारे समाज को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उसकी चरम परिणिति तभी स्वीकार्य है जब वह समाज द्वारा स्थापित उन मूलभूत मानकों के अनुरूप हों , जो धर्म ,जाति,उपजाति,आर्थिक हैसियत और गोत्र आदि पर आधारित हैं |इन मानकों का अतिक्रमण करने वालों के लिए तो बिना किसी उचित सुनवाई ,दलील या बहस के मौत का सुस्पष्ट प्रावधान है |घर ,परिवार और समाज के गौरव को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए यदि दो चार सिर फिरे आशिकों की गर्दनों को उनके प्रकृतिप्रदत्त स्थानों से काट कर अलग भी करना पड़े तो इससे कोई परहेज़ क्यों करे |मतिविहीन प्रेमियों के रक्त से ही तो सामजिक ढांचा मज़बूत होता है |मिथकीय प्रेमकथाओं के रक्तरंजित दुखांत से हम अपने समाज को युगों युगों से महिमा मंडित करते रहे हैं |
मेरे शहर में इश्क कुछ युवाओं(कुछ अधेड़ों के लिए भी ) के लिए फुलटाइम शगल है |वे अपने हाथों में फर्जी भावनाओं के ऐसे जाल लिए घूमते हैं जिसमें यदि कोई मछली एक बार फंसी तो उसका मसालेदार व्यंजन बन कर दिलचस्प किस्सों ,उत्तेज़क एमएमएस और वीडियो क्लिप के रूप में यहाँ वहाँ सशुल्क /निशुल्क वितरित होना तय होता है |कुछ लोगों के लिए ये प्यार मोहब्बत किसी निठल्ले के लिए वक्तकटी का समुचित उपाय है ,तो अनेक के लिए नीरस जिंदगी में रंग भरने का फौरी जरिया और अधिसंख्य के लिए बिना दान दहेज ,सामाजिक स्वीकार्य और दूल्हा या दुल्हन बनने के लिए ज़रूरी आहर्ता के बिना सुख सम्पन्नता से लबरेज जीवन को पाने का एक सुगम शार्टकट|यह अलग बात है कि अनेक महत्वाकांक्षी लड़कियां इसी शार्टकट को ढूँढती हुई ,बदनामी ,बेकसी और नैराश्य की बंद गलियों में जा पहुँचती हैं ,जहाँ बहुत खटखटाने के बावजूद कभी कोई दरवाज़ा नहीं खुला करता |प्यार के इस हाट में कभी- कभी लड़के भी ठग लिए जाते हैं और वे जब शहर की सड़कों पर जब किसी राँझा की तरह यह गाते हुए निकलते हैं कि ये दुनिया ,ये महफ़िल मेरे काम की नहीं, तो खुदाईखिदमदगार उन्हें किसी निकटस्थ पागलखाने का पता बताने में कोई विलम्ब नहीं करते |
मेरे शहर ने अब प्यार और जंग में हर नाजायज़ को जायज़ ठहराने वाले मुहावरे में एक संशोधन प्रस्तुत किया है |अब प्यार और जंग में जायज़ और नाजायज़ का कोई सवाल ही नहीं रहा है ,यह तो अब एक ऐसा विशुद्ध कारोबार है जिसमें अन्य धंधों की तरह केवल मुनाफे का अर्थशास्त्र ही मान्य है |नैतिक -अनैतिक ,पाप -पुण्य,सच -झूठ जैसे शब्दों को काराबोरी दुनिया से बहिष्कृत हुए अरसा हो चुका है |इस बात को जिसने जितनी जल्दी समझ लिया ,वही कामयाब हुआ |कुछ ऐसे मूढमति लोग इस हकीकत से आँख चुराते रहे,वे असफलता की ऐसी अँधेरी दुनिया में गर्क हुए कि अब उनका अतापता इतिहास की दीमक खाई किताबों में भी मिलना मुश्किल है |प्यार हो या युद्ध ,पराजितों का लेखा जोखा रखने की कोई परम्परा कभी नहीं रही |इतिहास के पन्नों में जयकारे ही दर्ज हुआ करते हैं |
अब तो सूचना यह है कि प्यार अब काराबोरी होने के बाद कुछ और कदम आगे बढ़ाने के लिए आतुर है |प्यार अब धीरे -धीरे एक ऐसा धर्मयुद्ध के नृशंस दरवाज़े तक पहुँच चुका है ,जहाँ मध्ययुगीन जीवन मूल्यों के साथ मुठभेड़ निश्चित है |यदि ऐसा हुआ तो प्यार और कारोबार की न केवल सारी परिभाषाएँ ही सिरे से खारिज होंगीं वरन तमाम प्रेमगीत भी अचानक युद्धघोष में तब्दील हो जायेंगे |तब यह जीवन कितना और कैसे जीने लायक रह पायेगा ,यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है ,जिसका उत्तर तो फ़िलहाल किसी के पास नहीं है |
प्यार की इस जंग का परिणाम मानवता की यकीनन पराजय में ही हो सकता है |
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