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शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

एक अप्रवासी बहन के नाम पत्र


एक अप्रवासी बहन के नाम पत्र
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सात समन्‍दरों की
मिथकीय दूरी को लांघ
एक नाजुक से धागे का
या चावल के चंद दानों
और रोली का
बरस-दर-बरस
मुझ तक निरापद चला आना
हैरतअंगेज है!

खून से लबरेज
बारूद की गंध को
नथुनों में भरे
इस सशंकित सहमी दुनिया में
तेरे नेह का
यथावत बने रहना
हैरतअंगेज है!

दो संस्‍कृतियों की
सनातन टकराहट के बीच
सूचना क्रांति के शोरोगुल
और निजत्‍व के बाजार में
मारक प्रतिस्‍पर्धा के बावजूद
मानवीय संबंधों की उष्‍मा की
अभिव्‍यक्ति का
सदियों पुराना दकियानूसी तरीका
अभी तक कामयाब है
हैरतअंगेज है!

तमाम अवरोध हैं फिर भी
कुछ है जो बचा रहता है
किसी पहाड़ी नदी पर बने
काठ के पुल की तरह
जिस पर से होकर
युग गुजर गए निर्बाध
भावनाओं की आवाजाही की तकनीक
अबूझ पहेली है अब तक
हैरतअंगेज है!

मेरी बहन;
कोई कहे कुछ भी तेरे स्‍नेह-सिक्‍त
चावल के दानों से
प्रवाहित होती स्‍नेह की बयार का
तेरे भेजे नाजुक से धागे
के जरिए
मेरे मन के अतल गहराइयों में
तिलक बन कर सज जाना
बरस-दर-बरस
कम से कम मेरे लिए
कतई हैरतअंगेज नहीं है

2 टिप्‍पणियां:

  1. भावनाओं के समृद्ध संसार में कुछ भी हैरतअंगेज नहीं!
    बेहद सुन्दर भावाभिव्यक्ति!

    जवाब देंहटाएं
  2. धन्यवाद अनुपमजी .भावनाओं के समृद्ध संसार में कुछ भी हैरतअंगेज नहीं,मेरी बात आप तक पहुंची और आपने इसे सराहा ,आभारी हूँ .

    जवाब देंहटाएं