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रविवार, 11 सितंबर 2011

ननुआ का जन्म दिन


जनगणना का काम जोर शोर से चल रहा था|गांव में भी इस काम में लगे कर्मचारी आये हुए थे|उनके पास काले रंग के झोले थे,जिनमें उनके पास वे तमाम प्रपत्र थे ,जिस पर गांव के निवासियों के बारे में उनके  मकान ,दुकान, खेत- खलिहान ,बच्चों की संख्या ,उम्र ,जाति ,शिक्षा ,आर्थिक हालात के बारे में एक -एक  सूचना दर्ज की जानी थी|कर्मचारियों के साथ ग्राम प्रधान भी था |वह सब ग्रामवासियों को बताता चल रहा था कि जनगणना के काम में सबका सहयोग ज़रूरी है,इससे जो आंकड़े एकत्र होंगे उनसे सरकार गांवों के हित के लिए योजना बनाएगी|
पूरे गांव में हलचल थी |सभी लोग इस काम में सहयोग को तत्पर थे|किसानों ने खेत पर काम पर जाने का काम टाल दिया था|मजूरी करने वाले भी काम पर लगने से रुक गए थे |पाठशाला के मास्टरजी भी जनगणना में लगा दिए गए थे ,इसलिए बच्चों को स्कूल जाने से मुक्ति मिली हुई थी ,वे गांव की गलियों में धमाचौकड़ी मचा रहे थे|
घनश्याम को सुबह ही पता चल गया था कि जनगणना वाले आने वाले हैं पर वह अपनी घरवाली के मना करने पर भी रुका नहीं था और पास के कसबे की ओर काम पाने की आस में निकल गया था |उसमें जनगणना के महत्व को लेकर कोई उत्सुकता नहीं थी|वह जानता था कि दो जून की रोटी का जुगाड़ करने के लिए काम पर जाना कितना ज़रूरी है|वह घर पर रह कर उन अटपटे सवालों का जवाब देने से बचना चाहता था जो उससे अक्सर पूछे जाते हैं पर जिनका समाधान किसी के पास नहीं हैं |
घनश्याम की पत्नी घर की झाड- बुहार करती बेचैन थी कि जाने ये लोग उससे क्या -क्या पूछेंगे |वह तो अनपढ़ गंवार है ,क्या बता पायेगी |कहीं सब उसकी खिल्ली न उडाये|और फिर वह इन लोगों को कहाँ बैठने को कहेगी ,उसके पास तो एक ढंग की चारपाई भी नहीं|वह अभी सोच में ही पड़ी थी कि जनगणना वाले आ धमके उसके द्वार |बाहर से प्रधान ने हांक लगाई तो वह लंबा घूँघट खींच कर बाहर आयी|
अरे खीसू घर पर न है |उसे बुला |प्रधान ने कहा |
वे तो काम पर जा रहे |उसने सहमते हुए कहा |
उसे न पता था कि आज गांव की जनगणना होनी है |बड़ा कमेरा बनता है |यह प्रधान की हिकारत भरी आवाज़ थी|
वह चुप खड़ी रही ,नजरें नीची किये |
चलो कोई बात नहीं ,तू ही बता जो हम पूछते हैं |जनगणना वाला काम निबटाने की जल्दी में था |
वे एक -एक कर तरह तरह के सवाल पूछते रहे |वह यथाशक्ति जवाब देती गई |पर बात तब अटकी जब उन्होंने उसके छोटे बेटे की उम्र पूछी |वह इस सवाल के जवाब में खामोश रही |तब प्रधान ने डपटा-तुझे ये न पता कि कब जना था तूने उसे |
आखिरकार उसे जवाब देना पड़ा |वह बोली तो सबको लगा उसकी आवाज़ किसी गहरे कुआं से आ रही है |उसने बताया -प्रधानजी खूब याद है कि कब जन्मा था मेरा ननुआ |उस दिन काली बदरी छाई थी |खूब बरसे थे मेघ |ननुआ के बापू काम पर गए थे कारखाने में काम करने|
पर यह तो बता कि तेरा  ननुआ है कितने बरस का|तुझे कुछ याद न क्या ?जनगणना वाला बेचैन हो चला था |
याद क्यों न होगा बाबूजी |उस दिन ननुआ के बापू के सीधे हाथ की चारों उँगलियाँ मशीन में फँस कर कट गई थी ,उस दिन जन्मा था यह अभागा|
यह सुनते ही सन्नाटा छा गया|थोडा रुक कर उसने कहना जारी रखा -कारखाने वाले ने इन्हें इसके बाद काम से निकाल दिया|जिसका सीधा हाथ ही पूरा न हो ,उसे भला कौन काम देगा |तबसे कसबे में जाकर छोटी मोटी मजूरी कर आते हैं |आधे हाथ वाले को आधी मजदूरी पर भी कोई काम पर कभी -कभी ही रखता है|ननुआ के जन्म के बाद हमने कुल  कितनी रात भूखे पेट  और कितनी अधपेट खाकर  बिताई ,ये तो हमें याद नहीं|इसे याद रख कर होगा भी क्या?
फिर किसी ने  कुछ न पूछा और वे आगे बढ़ गए |
निर्मल गुप्त



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