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सोमवार, 12 सितंबर 2011

गुपचुप खेल जारी है (लघुकथा)


अन्ना हजारे का आन्दोलन चल रहा था.दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना अनशन पर थे .सारा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके साथ आ खड़ा हुआ था.छोटे बच्चे कालोनी की गलियों में ,एक दो तीन चार -बंद करो यह भ्रष्टाचार का नारा लगाते घूम रहे थे.सबको लग रहा था कि अब तो भ्रष्टाचार का समूल नाश हो ही जायेगा.मालती को भी यकीन हो चला था कि अब उसके पति के रोज जेब भर -भर नोट भर कर लाने वाले दिन हवा हुए.अब तो उसकी जायज़ आमदनी में ही गृहस्थी चलानी होगी.फिर भी वह रोमांचित थी,उसका कामकाज से बचा हुआ समय टी वी पर आन्दोलन के लाइव टेलीकास्ट को देखते हुए बीतता.अन्ना को मंच से हुंकार भरते देख उसकी आँखे नम हो जाती थीं.
मालती का पति परिवहन विभाग में क्लर्क था.उसकी वेतन के अलावा रिश्वत की खूब मोटी कमाई थी.इसीलिए वह खुद शाही अंदाज़ में रहता था .बच्चों को ऐश कराता था .घर में उसने सारी सुख सुविधाओं का मुकम्मल इंतजाम कर रखा था.कमी तो मालती को भी कोई न थी.
आन्दोलन चलता जा रहा था .सरकार अन्ना की लोकपाल की मांग मानने को तैयार न थी .अन्ना भी अनशन पर अडिग थे.मालती के मन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.दिन ढले पति घर आता.वह एकदम बेफिक्र दिखता था.उसके दोनों बच्चे , बेटा जो ग्रेजुएशन की पढाई कर रहा था और इंटीरियर डेकोरेशन में डिप्लोमा कर रही बेटी ,भी एकदम बेपरवाह दिखते थे.
वह शुक्रवार का दिन था.वे सब रात को  साथ बैठे खाना खा रहे थे.बिना एकदूसरे से कुछ बोले ,चुपचाप.तभी बेटे ने चुप्पी तोड़ी.वस्तुतः उसने एक जुमला हवा में उछाला ,जो अंग्रेजी में था ,जिसका मतलब जो मालती समझ पाई वह यह था -देश  इतिहास के एक निर्णायक मोड़ पर है .क्या हम ऐसे ही बैठे रहेंगे ,हाथ पर हाथ धरे.उसकी बात सुन सभी चोंके.मालती ने अपने पति के मुहँ की ओर देखा.हमेशा की तरह वहाँ परम शांति का भाव पसरा था .थोड़ी देर वहाँ सन्नाटा पसरा रहा.बच्चों के पिता ने नपेतुले शब्दों में कहा -नहीं, हम यूं तमाशबीन बने नहीं रह सकते.क़ल सुबह हम सब रामलीला मैदान जायेंगे और अन्ना की आवाज़ के साथ अपनी आवाज़ को मिलायेंगे.
मालती हैरत में थी.उसके पति के भीतर भी एक क्रन्तिकारी का दिल धड़कता है ,ये तो उसे अब तक मालूम ही नहीं था.वे तो उसे निरा दुनियादार किस्म का आदमी समझती आयी थी.तब बच्चे यदि वहाँ नहीं रहे होते तो वह अपने पति का मुहँ चूम लेती.
सुबह हुई .मालती उसका पति ,दोनों बच्चे रामलीला मैदान जाने को जल्दी -जल्दी तैयार हो गए.उन्होंने पीने के लिए पानी कुछ सेंडविच,चिप्स आदि भी साथ रख लिए.बेटी ने कुछ प्लेकार्ड भी रातों -रात तैयार किये थे वे भी ले लिए.सब गाड़ी में सवार हो कर चल दिए .
रामलीला मैदान में खूब रौनक थी.कौमी तराने वातावरण में गूँज रहे थे.मंच पर बड़े -बड़े सेलिब्रिटी आकर अन्ना के समर्थन में बयान दे रहे थे .टी वी वाले चारों ओर अपना कैमरे दौड़ा रहे थे.कैमरा जैसे ही उनकी ओर आता लगता तो बेटा और बेटी प्लेकार्ड को हवा लहरा कर नारे बुलंद करते.
मालती के लिए तो ये एकदम नया अनुभव था.वह एक बनते हुए इतिहास में अपनी हिस्सेदारी को देख रही थी.
धीरे -धीरे रात घिरने लगी .सभी घर वापस जाने लगे .बेटा और बेटी दिन भर की धमाचौकड़ी से थक गए थे .गाड़ी की पिछली सीट पर बैठते ही सो गए .बगल की सीट गाड़ी ड्राइव करते पति का उसने देखा तो उसपर वही परम संतोष का स्थाई भाव था.
मालती के मन में अनेक सवाल उथलपुथल मचाए थे.उसने बच्चों को सोता जानकार पूछ लिया -सुनोजी ,अब तो आपकी ऊपरी आमदनी बंद हो जायेगी?यह सुनते ही मानो भूचाल आ गया.हँसते हँसते पहले उसके पति का सीना हिला फिर तोंद थरथरा उठी.इसके बाद तो हंसी से उसका गला रुंध गया और आँखों से पानी गिरने लगा.उसने तुरंत गाड़ी को किनारे कर उसे रोक दिया.वह सोच रही थी कि आखिर उसने ऐसा क्या कह दिया जो .....तभी पिछली सीट से उसे बेटे की आवाज़ सुनाई दी -मॉम डोंट बी सिली.डैड तो अन्ना के प्रशंसक हैं और गाँधी बाबा के भी भक्त.
बेटी ने भी बात को आगे बढ़ाया -यू नो गाँधी बाबा ,वो जो हरे नीले लाल कागज पर छपे होते हैं.
इसके बाद जो उनका सामूहिक ठहाका गूंजा तो मालती के कानों ने उस ध्वनि को सुनने से इंकार कर दिया.मालती को लगा युग बीते ,पात्रों के नाम बदल गए ,पर स्वार्थ  की चौपड़ पर विश्वास के चीरहरण का गुपचुप खेल तो  अभी भी सत्ता के दरबार से लेकर  घर -घर में चल रहा है.
निर्मल गुप्त


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