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शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

गांजावाला दे गया खुमार

  

         प्रख्यात गायक कुणाल गांजावाला  कल रात गा रहा था |उसकी  आवाज़ मानो किसी रहस्यमय  गुफा से अनेक गलियारों,नदी, नालों और वर्षावनों की सैंकडों प्रकाशवर्ष की  यात्रा तय करके  मेरे शहर की खुशनुमा हो चुकी रात में अपना  जादू बिखेरने में मशगूल थी |मैं सोने की कोशिश के बीच जाग रहा था|मुझ पर उसके गीतों का तिलस्म अपना असर दिखा रहा था |वह गा रहा था ,तेरे भीगे होंठ ,पर  मेरे होंठ शुष्क हो चली हवाओं के चलते सूखे हुए थे|मुझे तो अब किसी ने बताया है कि  काव्य में शारीरिक अवयवों के सौंदर्य के बखान पर केवल महिलाओं का एकाधिकार है |वैसे भी  वो गीत जो मन को लुभाते हैं अक्सर शरीर के स्तर पर आकर नाकामयाब हो जाते हैं |कविता  की वासंती हवा सजे धजे ड्राइंग रूम  या वातानुकूलित सभागार से बाहर आते ही अपना असर खो देती है |मुझे यकीन है कि ये सारी बातें कुणाल को ज़रूर मालूम होंगी |इसके बावजूद वह गाता रहा ऐसे  मलंग की तरह ,जो गाता है केवल और केवल अपने लिए |वह जब गाता है तो गायक और श्रोता एकाकार हो जाते हैं |
         रात का सुरमई रंग गहराता गया और कुणाल की आवाज़ मेरी नींद को धता बता कर मेरे ज़ेहन पर दस्तक देती रही |कभी लगे कोई नटखट बच्चा है जो घर का दरवाजा खटखटा रहा है |फिर लगा कि किसी अपने के आने की आहट है |कोई ख्वाब लगा जो लफ़्ज़ों का लिबास और  संगीत के गहने पहन कर चला आया है |ये उन हवाओं की ज्यादती भी हो सकती है जो  दरवाज़े को हिला कर अदृश्य हो जाती हैं और  पूरी ढिठाई के साथ  वहीँ कहीं सरसराती भी रहती है |एक वक्त तो ऐसा आया जब मेरे कानों में वो दिव्य संगीत लहरी गूंजने लगी ,जो कुणाल ने संभवतः उस रात गाई ही नहीं थी |बेचैन  मन और अतृप्त आत्मा को अपनी तृष्णा के लिए कोई न कोई उपाय मिल ही जाता है |
        मैं उस सभागार में नहीं था जहाँ गीत संगीत की इस महफ़िल में मेरे शहर के लोग पूरी तन्मयता के साथ हजारों की संख्या में मौजूद थे||उत्सवधर्मी मेरे शहर की फिजाओं में गीत और संगीत की  यह अभूतपूर्व परिघटना थी जिसके बीच कोई एंटी क्लाइमेक्स तमाम आशंकाओं के मध्य कहीं नहीं आया |लोग सुनते रहे ,कुणाल  सुनाता रहा |फरमाइशें होती रहीं ,वह उन्हें पूरा करता रहा |ऐसा मौका ही न आया कि किसी को रूठने का अवसर मिले ,न किसी के सामने रूठे को मनाने की दिक्कत ही पेश आयी |सब कुछ सामान्य रहा |मेरे शहर में वो बारात क्या जिसमें वारदात न हो | यही कारण रहा होगा कि सुबह के अधिकांश उन अख़बारों में भी इस कार्यक्रम की रिपोर्टिंग नदारद थीं ,जिनमें किसी भैंस के कटड़े के असामयिक निधन पर न्यूनतम दो कालम की खबर तो छपती ही है | मेरे पास इस कार्यक्रम में न जाने की  कुछ वाजिब वजह थीं कि देर तक जागना स्वास्थ्य के  लिए हितकर नहीं होगा |कि अव्यवस्था के चलते कौन क्या सुना पायेगा और कोई क्या सुनेगा |कि अराजक तत्व गीत संगीत  के भावप्रवण माहौल को बाधित करने के अपने दायित्व का निर्वाह ज़रूर करेंगे |पर मानना होगा कि मेरी सारी आशंकाएं जो अतीत के अनुभुवों पर आधारित थीं ,एकदम निर्मूल साबित हुईं |मेरी नींद तो बाधित अवश्य हुई लेकिन देखने के लिए कुछ हसीन ख्वाब थोड़े रूमानी ख्याल भी तो मिल गए ,जिनकी उम्र के इस पड़ाव पर कम से कम तो मुझे तो सख्त ज़रूरत है |
कुणाल के गीतों ने मुझे उसकी गायकी का मुरीद बना दिया |पर मुझे फिर भी उनसे एक शिकायत है कि वह अपने नाम के साथ गांजे को क्यों चिपकाये हैं |नारकोटिक्स महकमा केवल उनके नाम के आधार पर ही उनका चालान कर सकता है|वह मेरे शहर आये और ससम्मान विदा भी हो गए |उनकी आवाज़ का खुमार अब भी बाकी है लेकिन इस खुमार का गांजे से कुछ लेना देना नहीं है -इस बात पर कोई यकीन कैसे करे |

निर्मल गुप्त

        

1 टिप्पणी:

  1. "मेरी नींद तो बाधित अवश्य हुई लेकिन देखने के लिए कुछ हसीन ख्वाब थोड़े रूमानी ख्याल भी तो मिल गए ,जिनकी उम्र के इस पड़ाव पर कम से कम तो मुझे तो सख्त ज़रूरत है |"
    बहुत आकर्षक और मनभावन,बिलकुल कुणाल के गीतों की तरह .गीतों का रूहानी असर आपके लेखन में स्पष्ट है.

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